अब कुछ बदले- बदले से हैं हम,
कहती हैं वो,
पहले जैसे अब न रहे हम,
कहती है वो,
पूछती है हाल मेरा मुझसे ही,
हंसके कह देता हूँ मैं भी,
खुश-हाल हैं हम।
आंखें नम हो जाती हैं,
बातों बातों में,
फिर
वो भी चुप हो जाती है,
एक हिचकी उभर आती है,
कहती है वो-
क्यों दूरियां बढ़ती गयी,
कुछ बातों से,
क्यों कभी याद आती है ,
रातों में,
हम पहले जैसे हो जायें ,
तो अच्छा होता ,
मैं सुनता चपुचाप ,
कहती है जो भी,
पर
अब ये मुमकिन नहीं,
बस होती रहे बात यूँ ही।
साथ था जितना ,
वो मिलता रहे सदा ,
हों दूर या पास ,
न रहे इसका गिला ।।
2 comments:
सुंदर है यह रचना....
अब ये मुमकिन नहीं,
बस होती रहे बात यूँ ही।
साथ था जितना ,
वो मिलता रहे सदा ,
हों दूर या पास ,
न रहे इसका गिला ।।
बहुत ही सुंदर.
धन्यवाद
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