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Sunday, February 15, 2009

कल मेरी शादी नहीं हुई, और शायद अब आप लोग जरूर आमंत्रित होगे शादी में ?


काश मेरा सपना सच हो जाता तो मैं आप लोगों को लड्डू जरूर खिलाता पर कांच की दीवार के लिए हवा का एक झोंका ही बहुत होता है । कल का दिन कैसे गुजरा ये तो मेरा दिल जानता है । मैंने शादी की उम्मीद लिये गली कूचे , बाग बगीचे घूमता रहा पर वो न मिले जिसकी तलाश थी । शादी कराने का झूठा नाटक था इस संगठन का । मैने तो सोचा क्या था और क्या हुआ । पर ठीक है इस बार न सही कभी न कभी तो शादी होगी ही और आप सब जरूर आयेंगे तो और भी अच्छा रहेगा । शहनाई न होगी तो कम से कम ढोल और बाजा तो बजेगा ही ।
प्यार का दिन गुजरा । कुल मिलाकर बेकार ही रहा जेब पर ऐसा चूना लगा कि यह महीना तो अब जल्दी बीत जाये बस यही सोचता हूँ । जब लडकी साथ हो किसी लड़के के साथ तो वह भला कैसे कुछ खर्च कर सकती है । वरना हमारी परम्परा न बदल जायेगी । किराया , पिज्जा हट से लेकर रिचार्ज कूपन का ऐसा तगड़ा झटका लगा कि अभी भी सोचता हूँ तो बस यही बात आथी है मेरे दिमाग में कल काश मैं वेलेटाइन न मना पाता । इसलिए जो दोस्त या भाई बच गये वो बहुत ही भाग्यशाली और खुशकिस्मत थे । ऐसा अब में कह सकता हूँ । जो फूल १० रूपये में मिलता है रोज उसका भाव कल के दिन ५ गुना था । वो मरीजों जैसा मुह बनाये हुए गुलाब की कीमत। अगर खिलखिलाता हुआ लेना होता तो आज मैं कैफे में आकर ये सब बात लिख भी न पाता । बस एक ही कहावत याद आ रही है - " जान बची लाखों पाये "।
झूठ पर दुनिया है ,पब्लिकसिटी है । कुछ भी कह दो और कुछ भी न करो यही राग अलापो तो ठीक है ।वरना सच तो बस सच ही है ।

2 comments:

Udan Tashtari said...

फिलहाल जय हो!!! वरना सच तो बस सच ही है...हा हा!

Hari Joshi said...

बधाई हो बच गए। अच्‍छी पोस्‍ट।