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Wednesday, February 4, 2009

"वो लड़की"

फटे पुराने कपड़े तन पर लिए,
झाड़ियों में घूमती वो,
हाथ में कुल्हाड़ी
और
सर पर लकड़ी का बोझ,
नंगे पांव सर्द हवाओं के बीच,
आंखों से टपकते आंसू उसके
कांटों के बीच टहलती वो,
कटकटाते दांतों की आवाज,
थरथराता उसका बदन,
ठंड के आगोश में ले लिया था
सांवली सूरत को,
हर रोज नजर आती थी
वो लड़की,
कुछ अर्सा गुजरा
सब कुछ वैसा ही है,
पर वो लड़की नहीं है,
याद है -
उसका चेहरा,
उसका बाल -
जिस पर दो फीते लाल रंग के बधे थे।
मासूमियत से भर चेहरा,
अब बहुत दूर जा चुका है ,
जहां उसे सर्द हवाएं छू भी नहीं सकती।

5 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

अच्‍छा चित्र उकेरा है शब्‍दों में

हालात का

निर्मला कपिला said...

achha likhaa hai likhte rahiye

निर्मला कपिला said...

achha likhaa hai likhte rahiye

MANVINDER BHIMBER said...

सांवली सूरत को,
हर रोज नजर आती थी
वो लड़की,
कुछ अर्सा गुजरा
सब कुछ वैसा ही है,
पर वो लड़की नहीं है,
याद है -
उसका चेहरा,
उसका बाल -
बहुत khoob

Yogesh Verma Swapn said...

sunder shabdchitra hai.