जन संदेश
Wednesday, August 29, 2007
एग्नेस से ' मदर टरेसा तक
कक्षा में पढाते-पढाते उनकी नजर खिड़की पे ठहर जाती, स्कूल के पीछे एक झोपडपट्टी थी जो कक्षा की खिडकी से साफ दिखाई पड़ती थी। उस झोपड़पट्टी में फटेहाल , दुःखी, अनाथ तथा बहुत ही गरीब लोग रहते थे। वह रोज खिड़की से उनकी हालत देखती थीं। उनका मन पीडा से भर जाता था, उन लोगों की दयनीय दशा देखकर उनके हृदय में सेवामयी माँ का भाव उत्तपन हुआ। तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी और सबकी लाडली नन्हीं एग्नेस के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं थआ कि एक दिन वह 'मदर टेरेसा' के रूप में सम्पूर्ण विश्व की सेवा करगी। विश्व की इस महान विभूति का जन्म अल्बानिया में हुआ था। आयरलैण्ड होते हुए टेरेसा भारत आई। यहां उनकी कर्मभूमि कामुख्य केनद्र कोलकाता था। उन्हें एक बार एक ऐसी मरणासन्न महिला मिली जिदके शरीर को चीटियों और चूहों ने कुतर रखा था। उसे वे एक अस्पताल में ले गई, पर अस्पताल मे महिला को भर्ती करना अस्वीकार कर दिया। आखिर में उनके सत्याग्रह के आगे डाक्टरों ने उस महिला को भर्ती कर लियता । इस घटना मे उनको बहुत उद्वेलित किया और ऐसे मरीजों के लिए उन्होंने ' निर्मल हृदय आश्रम' की स्थापना की।
मदर टेरेसा को जहां कहीं भी कोई असहाय , लावारिस, और बीमार व्यक्ति दिखता या ऐसे व्यक्ति के विषय में सूचना मिलती वे उसे वहां ले आती और स्नेह, सहानुभूति के साथ उसकी सेवा और उपवार करतीं। मदर टेरेसा ने कुष्ठ रोगियों के पुनर्वास तथा उपचार के लिए विशेष बस्तियाँ बसाई। एक बार एक अमेरिकी सीनेटर ने ऐसी बस्तियों का दौरा किया एक शिविर में उन्होंने देखा कि वह एक बीमार व्यक्ति की सेवा में लगी हुई हैं । रोगी उल्टी, दस्त व खून से लतपथ था। यह दृश्य देखकर वह मदर के सामने श्रद्दापूर्वक झुककर बोले, "क्या मैं आपसे हाथ मिला सकता हूँ।" मदर अपने हाथों को देखकर बोली ," अभी मेरे हाथ साफ नही हैं।" सीनेटर मे भव विहृल होकर उनके हाथ को अपने सिर पर रख लिया और कहा," इन पवित्र हाथओं को गन्दा कहक इनका अपमान मत कीजिए।" ५ सितम्बर १९९७ को मदर टेरेसा ने कहा , " मैं अब और सांस नहीं ले सकती।" इसके बाद उनहें बेचैनी महसूस हुई, डाक्टर को बुलाया गया ,पर वह हमेशा के लिए इस संसार को छोड़ गई।
प्रेषक - अर्चना यादव
लेबल:
स्मरण
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
काश मैं मदर टॆरेसा से मिल सकती। उनसे एक बार पूछ्ना चाहती हूँ कि इतना प्यार वो कैसे बाँटती थीं। काश थोड़ा सा प्यार माँ मुझे भी देतीं, मैं भी उनके मार्ग पर चलना चाहती हूँ लेकिन कोई राह दिखाने वाला नहीं।
आपसे बहुत ही प्यार करती हूँ माँ।
प्रीति मिश्रा
Post a Comment