आईस पाइस का खेल खेलते ,
मिट्टी के घर बनाते थे,
फिर बिगाड़ देते थे ,
मां से थोड़े समान मांगते
फिर एक चूल्हे पर उसे पकाते थे,
बनता क्या कुछ याद नहीं,
फिर भी अच्छा लगता था ,
नदियों में किनारे पर जा जाकर,
भीगते और सब को भीगाते थे,
कंकड़ ,और शीपी को लेकर,
उसकी एक माला बनाते थे,
बंदरों की तरह उछलकर ,
छोटे पेड़ो पर चढ़जाते थे,
कभी बात बात पर गुस्सा होते ,
रोते , चिढ़ते , मारते ,
फिर भी एक साथ हो जाते थे,
ऐसा अपना बचपन था.
झूठी कहानी भूतों वाली से,
अपने साथियों को डराते थे,
स्कूल से झूठा बहाना बनाकर ,
खेतों में हम छिप जाते थे,
मम्मी के मार से बचने को ,
न जाने क्या क्या जतन बताते थे,
दादी से अपने हम झूठी बाते मनवाते थे,
कभी सबेरे उठकर रोते,
तो कभी सब को हसाते थे,
ऐसा ही अपना बचपन था ,
खेतों में लोट पोट कर ,
फसलों को तोड़ तोड़कर ,
गायों को खिलाते थे,
सुबह सुबह दूध को पीकर,
अपनी मूछ बनाते थे ,
और शीशे में देख खुद को ,
हम भी बड़े बन जाते थे ,
कुछ ऐसा अपना बचपन था ।
आज सभी बीती बातें ,
एक कोने में धुंधली हैं ,
सोच सोच कर अच्छा लगता है ,
कैसा अपना बचपन था ।
16 comments:
बहुत अच्छा , आपकी ये कविता बचपन की याद दिलाती है। आज सभी बीती बातें ,
एक कोने में धुंधली हैं ,
सोच सोच कर अच्छा लगता है ,
कैसा अपना बचपन था । बधाई हो । आभार
आपकी कविता पढ़कर यादें ताजा हो गयी कितना कुछ किया करते थे बचपन में ........................सच ही लिखा है आपने ये लाइनें ।
झूठी कहानी भूतों वाली से,
अपने साथियों को डराते थे,
स्कूल से झूठा बहाना बनाकर ,
खेतों में हम छिप जाते थे,
मम्मी के मार से बचने को ,
न जाने क्या क्या जतन बताते थे।
बधाई ।
बहुत प्यारी कविता.. वकाई एसा ही था बचपन...
bahut kuch yaad aa gaya hai tumahri post se ...bahut achcha likha hai
bahut achchi kavita hai aapki....... bachpan ki yaad taza ho gyi,ek bar phir se aaies paaies khelne ka dil karne laga hai.
बहुत प्यारी कविता.....आपकी कविता पढ़कर यादें ताजा हो गयी...बधाई ।
आपकी ये कविता बचपन की याद दिलाती है।
bahut bahut badhai aap ko nishu ji
बचपन पर केन्द्रित कविता बहुत ही सुन्दर लगी ...........
बहुत मस्त था आपका बचपन!
हमारा भी कुछ कम नहीं था!
छूनेवाला खेल भी पेड़ पर
चढ़कर खेला करते थे!
bachpan ki yaad dilati sunder kavita.
हमारा भी बचपन ऐसा ही रहा है ....यादें ताजा हो गईं
बचपन की यादें ताजा हो गयी
बचपन हरा हरा होता है,
खुशियों से भरा होता है.
साभार
हमसफ़र यादों का.......
कौन कहता है बचपन की बातें भूली-बिसरी हो जाती हैं, इस कविता को पढ़कर तो बिल्कुल भी नहीं ... बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने ।
बधाई ।
बहुत प्यारी कविता है
बचपन सा खूबसूरत उम्र का कोई पड़ाव नहीं...-सुंदर रचना!
~सादर!!!
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