हर आंखों में शक था.............हर मुंह पर सवाल था नाम का ......जाति , धर्म का । शक के दायरे में हर इंसान आने लगा । हर दाढ़ी में मुसलमान दिखने लगा ...............पर क्या किसी अपराध के पीछे धर्म और मजहब ही होता है क्या ? किराये पर मकान देते हुए मकान मालिक पूछता है धर्म और नाम । सच बताने पर इंकार ही मिलता है कितना मुश्किल है इस दाग को मिटाना । कभी - कभी कुछ घटनाएं ऐसे मुद्दों पर एक बहस तैयार कर देते हैं । कि क्या सभी मुसलमान आतंकवादी हो सकते हैं ? हिन्दूवादी संगठन तो कहते हैं हां पर आपका क्या जवाब होता है मुझे पता नहीं ? लेकिन मैं इस जाति धर्म को आतंक से नहीं जोड़ता ।
अभी कुछ दिन पहले मुझे आजमगढ़ के कुछ लोगों (मुसलमान युवाओं ) से मिलने का मौका मिला । सभी अभी छात्र ही स्तर के थे । और साथ ही बाहर काम करने वाले थे । जो दिल्ली , मुंबई आदि जगहों पर जाकर अपना परिवार चलाते थे किसी तरह से । आज इन लोगों के पास काम देने से पहले जब घर बार के बारे में पूछा जाता है तो बेशक ही इनको काम नहीं मिल सकता । अब इन सभी का दोष केवल इतना है कि यह मुसलमान है और आजमगढ़ के रहने वाले हैं ।
बाटला हाऊस एनकाउटर के बाद मेरे एक मित्र को इस लिए कमरे नहीं दिये गये कि वह जाति कामुसलमान है । मुझे लगता है कि देश की जनता की यह सोच केवल उनकी अपनी ही नहीं बल्कि मीडिया और कुछ प्रमुख संगठनों की है जिससे यह अविश्वास कायम हुआ है जो कि कतई सही नहीं है यह भेदभाव गलत है । और दुखद भी है ।
10 comments:
यह छोटी सी पोस्ट आशा की किरण है...आज नीशू ने सोचा...कल कोई ओर ऐसे ही सोचेगा और एक दिन सब भेदभाव मिट जाएँगे..अमन चैन और प्यार होगा.... ढेरो शुभकामनाएँ
Na hamne apne jeevan me is tarah ke koi bhed bhaav kiye aur na hi jis samaaj me hun wahan yah sab ghatit hote dekhti hun...par maanti aur jaanti hun ki aisa hota hai jo ki nihayat hi durbhagypoorn hai...
Ise har halat me khatm hona chahiye....
नीशु जी यह छोटी सी पोस्ट है पर यह आपके जाति और धर्म के नजरिये को दर्शाती है। जानकर अच्छा लगा की आप जाति और धर्म पे विश्वास नही रखते है , और हमे ऐसा होना भी चाहिए। नीशु जी मै जानना चाहुंगा कि, किस हिन्दूवादी संगठन ने कहा था की सभी मुसलमान आतंकवादी होते है ,? क्योंकी आप इस तरह से किसी भी हिन्दूवादी संगठन पर आरोप नही लगा सकते? अच्छा प्रयास है।
मैंने पूरे देश में कहीं भी इस तरह की बात नहीं सुनी...!सब लोग मिल जुल कर रहते है......हाँ कुछ लोग है जो ये सब सहन नहीं कर पाते..!जितने सुरक्षित मुस्लमान भारत में है उतने कहीं नहीं...
बन्धु ,
यही बात है कि सिर्फ़ ’अर्ध सत्य ’ की आड मे बहुत पैरोकारी इस ढन्ग से की जा रही है कि जैसे तो लोग बेवकूफ़ हैं .ीक है , हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा समझा रहा है कि हर मुसलमान आतन्कवादी नहीं होता है .....लेकिन कोयी येभी तो समझाओ कि क्यूं हर आतन्कवादी न सिर्फ़ मुसलमान होता है ,उसे गर्व से कहता भी है कि वो है.
आप्की मर्जी , शुतुर्मुर्ग ी तरह बालू मे सर छुपा बैठ जायिये .......और इन्तजार करिये , जो होगा आप्को शायद मालूम नहीं या लोगों और खुद को भी शिक्छित करिये . अगर आप जनाब ’ प्रायोजित ’ हैं तब तो कहना ही क्या है .........आजकल ये धंधा खूब फ़ल फ़ूल रहा है .
जै हिन्द !
अच्छा ड्रामा किये जा रहे हो , शबाना की लाईन पकड कर चलो रहो बेट्टा . बहुत नाम कमाओगे
जनाव, मुझे ये तो मालूम नहीं की आप क्या है और आपका इस प्रश्न को उठाने का इमानदार तात्पर्य क्या है लेकिन कड़वी जुबान रखता हूँ इसलिए कुछ कड़वा बोलना चाहूँगा:
यह कहना सरासर गलत है की हर मुस्लमान आतंकवादी है लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि ज्यादातर मुसलमानों की सोच चरमपंथी और हिंसक प्रवृति की है ! और जिसका एक प्रमुख कारण जो मुझे लगता है वह है इन लोगो का खान पान ! हिन्दुस्तान में भले ही मुसलमान सेकुलरिज्म और लोकतंत्र का चैम्पियन बना फिरता हो लेकिन दुनिया भर में अगर गौर फरमाए तो सबसे बड़ा कौम्युनल और विस्तारवादी एक मुस्लमान ही है !
अभी कुछ उर्दू पात्र-पत्रिकाओ की सोच देखकर हंसी आ रही थी ! आजकल कोई भी उर्दू दैनिक उठा लो बस एक ही बात आपको कॉमन लगेगी और वह है इनका ब्लैकमेल! आजकल वे कौंग्रेस के पीछे यह कहकर हाथ धोकर पड़े है कि हमने यानी मुसलमानों ने कोंग्रेस को जिताने में ५० % से अदिक की हिस्सेदारी रही है अत अब वक्त आ गया है कि कोंग्रेस मुसलमानों को इसकी कीमत अदा करे ! मतलब यहाँ भी सौदेबाजी ! ये हिंदूवादी ताकतों को कमुनल बताते है, मेरी समाज में यह नहीं आता कि आखिर ये लोग क्या है ? ये क्यों देश में सिर्फ मुसलमानों की ही सोचते है ? कुछ समय पहले मेरठ के एक पुर्व सांसद के सांसद निधि फंड के खर्च का लेखा जोखा देख रहा था, जनाव ने पूरा फंड सिर्फ मस्जिदों के आगे की सड़क और उसके चारो तरफ को सुधारने में खर्च किया, मानो बाकी सडको पर तो मुसलमान चलते ही नहीं !
एक और हास्यास्पद बात बताता हूँ ; एक उर्दू अखबार में छपे लेख में यह मांग की गई है कि जाट रेजिमेंट और सिख रेजिमेंट की तर्ज पर इनकी भी एक पठान रेजिमेंट बनायी जाए ! ये है इनकी सोच का नमूना ! इन्हें फौज में भारती होने से कोई नहीं रोकता मगर ये भूल रहे है कि कॉम आधारित फौज अंग्रेजी ने बनाई थी सतंत्रता के बाद हिन्दुस्तानियों ने नहीं ! और इनकी पठान रेजिमेंट भी थी अब अगर उसे इनके भाईबंद चीन कर ले गए तो उसमे किसी का क्या दोष ? और ये आज सेना को इस तरह कम्युनल हिस्सों में बाँटने वाले होते कौन है ? इंसान अपनी गुडविल खुद बनता बिगाड़ता है , औ़र इन्हें किराये के लिए मकान मिलने में आज दिक्कत होते है तो इसके लिए ये और इनका इतिहास जिम्मेदार है, हिन्दू नहीं !
नीशू जी , आपकी यह पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा । जामियां नगर से मेरा वास्ता रहा है । और वहां पर किसी भी मुसलमान को शक के ही निगाह से ही देखा जाता है । किराये पर कमरे नहीं मिल रहे हैं । काम नहीं मिल रहा है । और भी बहुत सी बातें हैं जिससे यह इनकार नहीं कर सकते हैं कि लोगों कि सोच जाति और धर्म से ऊफर नहीं उठी है । आपकी सोच जानकर बहुत ही अच्छा लगा ।
नीशू जी , आपने जिस दर्द को व्यक्त किया है वह बिल्कुल सही है । बाकी लोगों की राय पर मैं क्या कहूँ ?
आपकी सोच जैसे और लोग भी सोचें तो यह देश जाति धर्म से जरूर उबर पायेगा । आतंकवाद जाति धर्म का दुश्मन नहीं मानवता का है
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