द्विवेदी युग के प्रमुख कविओं में मैथिलीशरण गुप्त का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता
है । राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी को खड़ी बोली को नया आयाम देने वाले
कवि के रूप में भी जाना जाता है । गु्प्त जी ने खड़ी बोली को उस समय
अपनाया जब ब्रजभाषा का प्रभाव हिन्दी साहित्य में अपना प्रभाव फैला चुका
था । श्री पं महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से खड़ी बोली को अपनी
रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक
काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया । हिन्दी कविता
के लंबे इतिहास में कवि गुप्त जी ने अपनी एक शैली बनायी यह थी - पवित्रता,
नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा । राष्ट्रकवि गुप्त जी की
प्रमुख कृतियां रही - पंचवटी , जयद्रथ वध , यशोधरा एवं साकेत ।
मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म झांसी में हुआ । विद्यालय में खेलकूद को ध्यान देते हुए
पढ़ाई को पूरी न कर सके । घर में ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का
अध्ययन किया। गुप्त जी ने बाल्यकाल से १२ वर्ष की आयु में ब्रजभाषा में
कविता रचना आरम्भ किया ।जल्द ही इनका संपर्क आचार्य महावीर प्रसाद
द्विवेदी से हुआ और इनकी रचनाएं खड़ी बोली मासिक पत्रिका "सरस्वती " में
प्रकाशित होने लगी । गुप्त जी का पहला कविता संग्रह "रंग में भंग " तथा
बाद में "जयद्रथ वध " प्रकाशित हुआ । सन् १९१४ ई. में राष्टीय भावनाओं से
ओत-प्रोत "भारत भारती' का प्रकाशन किया । जिससे कवि मैथिली शरण गुप्त जी
ख्याति भारत भर में फैल गयी । गुप्त जी नें साकेत और पंचवटी लिखी उसके बाद
गांधी जी के संपर्क आये । गांधी जी ने मऔथिली शरण जी को " राष्ट्रकवि "
कहा ।
गुप्त जी अपनी कलम से संपूर्ण देश में राष्ट्रभाक्ति की भावना भर दी । गुप्त जी की कलमसे ये स्वर निकले -
'जो भरा नहीं है भावों से
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।'
मैथिलीशरण गुप्त के जीवन में राष्ट्रीयता के भाव कूट-कूट कर भर गए थे। इसी कारण उनकी सभी रचनाएं राष्ट्रीय विचारधारा से ओत प्रोत है
। 12 दिसंबर 1964 को चिरगांव में ही उनका देहावसान हुआ।
16 comments:
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण जी पर यह आलेख पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा । राष्ट्र प्रेम तो गुप्त जी में कूट कूट कर भरा था । यह तो उनकी रचनाओं से ही पता चलता है ।
गुप्त जी का हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । उन्होंने हिन्दी साहित्य को नया आयाम दिया । राष्ट्रप्रेम की भावना को जनमानस में पहुंचाया अपनी कलम के माध्यम से । आलेख बहुत जानकारी पूर्ण लगा । बधाई
नीशू जी , राष्ट्रकवि गु्प्त पर आलेख का आलेख जानकारी से भरा है । एक महान कवि के रूप में गुप्त जी सदैव याद किये जायेंगें । अपनी कविता से राष्ट्रप्रेम की भावना को जागृत करने का श्रेय गुप्त जी को है । एक ऊर्जा से भरी होती थी इनकी रचनाएं । कई महान काव्य लिखे गुप्त जी ने । धन्यवाद बहुत बहुत इस आलेख के लिए ।
मैथिलीशरण गुप्त जी पर केन्द्रित यह आलेख इस राष्ट्रकवि के कार्यों को दर्शाता है । किसी भारतीय जनमानस के हृदय में राष्ट्रभावना के लिए यह लाइनें -
'जो भरा नहीं है भावों से
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।'
राष्ट्रप्रेम को दर्शाती है यह क्रांति के बीज बोती है । सुन्दर आलेख । धन्यवाद
neeshu, rashtra kavi ki yaaden taaza kara umda karya kiya,
'जो भरा नहीं है भावों से
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।'
swarnim akshar hain, sadhuwaad.
मैथिलीशरण गुप्त जी पर लिखा गया एक बेहतरीन आलेख. आभार.
गुप्तजी की रचनाऐं स्कुल में खुब पढ़ी.. गुप्त जी के बारे में अच्छा आलेख..
jo bhara nahi hai bhavo se bahti jisme rashdhar nahi vo hridaya nahi vo pathar hai jisme swadesh ka pyaar nahi ye panktiya bachpan se sunta raha hu aaj iske lekhak ke bare me itna kuch jankar bahut acha laga ati sundar
मैथिलीशरण जी पर आपका लेख बहुत ही अच्छा लगा । राष्ट्र प्रेम और जीवन से भरपूर लिक्खी कविताओं का तो खजाना थे गुप्त जी...........ये बात उनकी रचनाओं से ही साफ़ समझ आती है ...........हिन्दी साहित्य को उन्होंने नया आयाम दिया है......... बधाई
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राष्ट्र-प्रेम की भावना को उद्दीप्त करने वाले इस आलेख के लिए बधाई आपकी लेखनी को किन्तु ...
जो भरा नहीं है भावों से
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
... ये पंक्तियाँ मेरी जानकारी के अनुसार गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' जी की हैं, मैथिली शरण गुप्त की नहीं। कृपया देखें 'कविताकोश' में दोनों कवियों की रचनाएँ ! सप्रेम !
http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%97%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2_%27%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A5%80%27_/_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF
इस लिंक में इन पंक्तियों को सनेही जी की बताया गया है
जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं
ये पंक्तियां पं.गया प्रसाद शुक्ल सनेही की हैं
मृदुल शर्मा
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