जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Monday, May 11, 2009

यौन शोषण और छेड़खानी तो आम बात है आज भी

मैं अपने आपसे क्भी खुश होता हूँ तो कभी बहुत ही दुखी । जब कभी कुछ ऐसा आखं के सामने हो जिसका खुद विरोध करने को जी कहे और चाहते हुए भी हम कुछ न बोल सकें । आत्मग्लानि से मन भर उठता है । बात पर सीधे आता हूँ गांव के आस पास के इलाके में जितनी भी आबादी है वह बहुत ही निचले और दबे कुचले लोगों की है । ज्यादातर किसान और मजदूर ही हैं जिसकी रोजी रोटी हर दिन की मेहनत पर टिकी होती है ।
घर के मान पर धान के पेडों के छप्पर और सोने के लिए खाट के सिवा और कुछ खास नहीं । खुले आसमान के नीचे गुजारा करना आसान नहीं पर जो मजबूरी हो तो यह सब कुछ अपना सा ही लगने लगता है । ऐसे में इस लोगों की जीवन दशा की कल्पना करना कुछ कठिन नहीं ।
इस तबके के लोगों में लड़कियों को भी आमतौर पर मजदूरी के लिए गांव गांव काम पर जाना होता है । जिससे रोटी मिल सके भरपेट । मेरा गांव जिसमें ज्यादातर पंडित याफिर कु्र्मी जाति ही निवास करती है । ऐसे में पंडित बंधुओं का आज भी इस दबे कुचले लोगों पर दबदबा कायम है । अगर किसी को काम के लिए बुलाया अगर वह न करना है तो लाठी डण्डों से पिटाई तो होती ही है साथ ही साथ बहु बेटियों के साथ जबरन ( यौन शोषण) , या फिर छेड़छाड़ होती है । पीड़ित में इतना दम नहीं कि वह थाने में जाकर प्राथमिकी दर्ज करा सके ।पुलिस भी मामला दबाना चाहती है । अगर बात आगे बढ‌़ी तब । जो कम ही होता है । यह बदलाव का एक चित्रण है आज भी ।शेष अगली पोस्ट मे...................

9 comments:

डॉ .अनुराग said...

.जिसकी लाठी उसकी भैंस है जी.....

महेन्द्र मिश्र said...

अनुराग जी के विचारो से सहमत हूँ . नीशूजी अभी तक कहाँ रहे ?

विजय तिवारी " किसलय " said...

नीशू जी
मैं भी ग्रामीण अंचल से वास्ता रखता हूँ.
आपने जो बात कही है , वह सोलह आने सच है पर ३०-४० साल पहले की है,
आज भले ही वह कितने ही पिछड़े इलाके का आदमी हो अपनी इज्ज़त, मान मर्यादा समझने लगा है.
शिक्षा, टी वी, स्कूल, संपर्क रोडें और सरकारी तंत्र के प्रभावी होने के कारण अब ये सब आसान नहीं है . हाँ मैं अपवाद की बात नहीं करता . ऐसा होता भी है.
बदलते परिवेश में अब शोषण पुरानी बातें होती जा रही हैं.
फिर पिछडे वर्गों में भी आज जागरूकता बढ़ रही है.
- विजय

Rachna Singh said...

The "conditioning" is such that the society thinks woman is property and can be used

we need to groom our new genration to rise above this

your post has come after a gap of many days hope all is well
regds
rachna

Yogesh Verma Swapn said...

baat sach hai, neeshu achcha mudda uthaya hai, lekin ye batao ab tak kaun si gufa men kumbhkaran ki neend so rahe the.

अनिल कान्त said...

wo kahte hain na ki ...jo gareeb aur daba kuchla hai uski bahu aur betiyon ko to ye .....samjhte hain

aakhirkar jahan report karne jaayein wahan bhi to bhakshak baithe hain

हिन्दी साहित्य मंच said...

विकट समस्या है , सच्चाई बहुत ही तीखी है जिसे स्वीकार कर हमें प्रयास करना होगा ।

Unknown said...

hum sab ko ek prayash toh karna hi chaiye

शिव शंकर said...

isse kaise nibta jaye kuch upay bhi toh nahi hai