रात की तन्हाइयों में जब भी ख्याल आता है,
कि इस जहां में कितने अकेले है हम,
याद आता है तुम्हारा वो वादा,
जब तुमने कहा था कि साथ हम रहेंगे सदा,
कहां गये वो वादे,
वो कसमें, वो इरादे,
जाने से पहले कम से कम कह कर तो जाते,
तुम्हें क्या मालूम नहीं था कि तुम्हारा रस्ता मैं कभी न रोकूगीं।
क्या यही तुम्हारा यकीं था।
बस इसी भरोसे के दम पर ,
हम साथ चले थे, एक दूजे का हाथ थाम कर ।
सोचती हूँ शायद वो दिन फिर से वापस आ जायें ।
इसी उम्मीद में जी रही हूँ कि शायद तुम लौट आओ।
मीनाक्षी प्रकाश की कलम से
9 comments:
bahut janab
सुंदर कविता! मन के भावो की अति सुंदर अभिव्यक्ति.
Apanee kalam se bhee kuch likho bandhu.....
बहुत भावपूर्ण रचना है।बधाई।
नीशू अच्छा लिखते हो भई...
बहुत सुन्दर...
सुनीता(शानू)
मीनाक्षी जी की कलम लगता है दिल से चलती है। कोमल भावनाओं की गहरी कचोट है इस कविता में।
दिल को छू गया। वादे थे....लेकिन "वादों का क्या" तो नहीं ही होनी चाहिए।
बहुत सुन्दर रचना ।
घुघूती बासूती
bahut hi accha likha hai . bhav bahut hi acche hai likhte rahiye
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