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Wednesday, October 31, 2007

तेरे आने की उम्मीद

रात की तन्हाइयों में जब भी ख्याल आता है,
कि इस जहां में कितने अकेले है हम,
याद आता है तुम्हारा वो वादा,
जब तुमने कहा था कि साथ हम रहेंगे सदा,
कहां गये वो वादे,
वो कसमें, वो इरादे,
जाने से पहले कम से कम कह कर तो जाते,
तुम्हें क्या मालूम नहीं था कि तुम्हारा रस्ता मैं कभी न रोकूगीं।
क्या यही तुम्हारा यकीं था।
बस इसी भरोसे के दम पर ,
हम साथ चले थे, एक दूजे का हाथ थाम कर ।
सोचती हूँ शायद वो दिन फिर से वापस आ जायें ।
इसी उम्मीद में जी रही हूँ कि शायद तुम लौट आओ।


मीनाक्षी प्रकाश की कलम से

9 comments:

Ashish Maharishi said...

bahut janab

बालकिशन said...

सुंदर कविता! मन के भावो की अति सुंदर अभिव्यक्ति.

आशीष कुमार 'अंशु' said...

Apanee kalam se bhee kuch likho bandhu.....

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत भावपूर्ण रचना है।बधाई।

सुनीता शानू said...

नीशू अच्छा लिखते हो भई...

बहुत सुन्दर...

सुनीता(शानू)

अनिल रघुराज said...

मीनाक्षी जी की कलम लगता है दिल से चलती है। कोमल भावनाओं की गहरी कचोट है इस कविता में।

Rajiv K Mishra said...

दिल को छू गया। वादे थे....लेकिन "वादों का क्या" तो नहीं ही होनी चाहिए।

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर रचना ।
घुघूती बासूती

Unknown said...

bahut hi accha likha hai . bhav bahut hi acche hai likhte rahiye