रोयी हुई तू आज है अबला,
खुद से लड़कर हारती है क्यों भला ?
जिसको दिया तुमने जन्म ,
करता है वो ही मान मर्दन ,
तू ही तो है विधाता इस जहां की,
कर भी ले तैयार खुद को ,
लड़ना तो होगा तुझे एक दिन,
अस्त्र तेरा खुद है तू जान ले ,
ममता की गठरी सदा है साथ ही,
मर्म स्पर्श में है प्यार सदा तेरे ,
ये बने न पैर की अब बेड़िया ,
तोड़कर खड़ित कर दे दीवार तू,
है समय की मांग में बदलना तुझे,
अब नहीं सहना , सिसकना तुझे ,
कर अब विश्व में हुंकार तु,
वार से अपने देगी हार तू , हार तू ।।
आज रोई नहीं तू अबला .....
8 comments:
आपकी यह रचना स्त्री दशा को सुन्दरता से इंगित करती है साथ ही साथ व्यथा को भी । सुन्दर रचना के लिए आभार ।
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना . बधाई.
बहुत बढ़िया रचना है
bahut badhia. badhai.
सुन्दर भावपूर्ण रचना..
bahut hi sunder rachna
neeshoo ji , nari per aap ne sunder racna likhi hai . badhai
bahut khub
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