कुछ भी सही लगता रहा न जाने क्यों गलत होते हुए भी ? हमेशा से एक तलाश अधूरी लिए दिल के कोने में कभी नहीं भटका अचानक ही कुछ ऐसा जिसकी मुझे जरूरत थी पर शायद उम्मीद तो कभी भी न थी । पहली मुलाकात की याद शायद ही कभी जेहन से उतर पाये । इन सब के बीच खुद इतना खुश हो जाना था जिसको किसी के सामने दिखाया और बताया न जा सकता है ।
हम किसी ट्रेन या बगीचे या फिर राह चलते न मिले थे हमको तो बस मिलना था इसलिए मिले थे । कहीं कोई जान पहचान न होते हुए भी अजनबी न थे । मोबाइल का जमाना मेरे लिए अच्छा रहा प्यार की शुरूआत से लेकर अंत तक साथ रहा । इसलिए इसका शुक्रगुजार हूँ । किस्मत ने टक्कर दी और मैं न जाने क्यों वो कर बैठा जिसको मैं कभी न कर सकता था । धीरे धीरे हम इतने पास पास हुए कि दूर होने का गम पल पल घुटन देता । कहते हैं कि ज्यादा प्यार हो तो फिर वहां पर कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर होने वाला है । एक साल में मिलाने से लेकर बिखराब तक का सफर तय कर लेने के बाद भी आज जब सोचता हूँ मैं सब बातों को तो न जाने एक विश्वास अब भी कायम सा लगता है जो कि है ही नहीं ।
मुझे लगता रहा है कि मैंने जो किया वह सही है पर फिर भी अकेला हूँ क्यों ? शायद इसका जवाब मेरे पास नहीं है और न कभी होगा । इसंान अपनी हार पराजय को बहुत ही मुश्किल से स्वीकार करता है और मैं उनमें से हूँ हार कर भी न जाने जीत का एहसास पाता है । दूर रहने से कोई रिश्ता कमजोर नहीं होता बल्कि और मजबूत ही होता लगा मुझे । लड़ाई करके किसी को भूलना हो ही नहीं सकता बल्कि और भी पास आ जाते हैं । गिले शिकवे जरूर होते हैं पर प्यार और भी ज्यादा ।
ये सब समझाना चाहता था मैं पर कभी सफल नहीं हो पाया हूँ मैं न जाने क्यों या फिर वो समझना ही न चाहते हो । जो भी है आज मेरे पास शुकून और दुख दोनों देता है ।
6 comments:
निशु जी।
संस्मरण अच्छा है,
आप अपने काम पर वापिस लौट आये हैं।
बधाई।
neeshu, pata nahin chal raha tum aa gaye ho, sansmaran umda hai.
Nishoo.sabhi kuch dekh dala .sahitya sabha aur sab kuch tumse juda hua,apna mobile no dey dena ,galti se delete ho gaya hai .
Meri shubh kamnayen.
tumharahi
bhoopendra
यह रिश्तों की दास्तान बहुत ही अजीब है , सुन्दर प्रस्तुती।
bahut khub . unda likhte hai aap
nice
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