जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Tuesday, May 12, 2009

छेड़खानी और यौन शोषण तो आज भी आम बात है -२

छेड़खानी और बलात्कार को दबाना आज भी सामाजिक प्रचलन जैसा ही है क्यों कि ज्यादातर इसमें मोटी पार्टी यानि धनवान लोगों का ही हाथ होता है। सफेद कुर्ते पर एक मिट्टी का कण भी बहुत ही काला दिखता है ऐसे में अगर एक भी आरोप सामने आये तो बोलने वाले पीछे की कतार में खडे हो कर अपनी आवाज बुलंद जरूर करने से नहीं चूकते हैं चाहे बात सही तरीके से ना मालूम हो । पर मजा लेने में क्या जाता है और वह मजा होता है उस गरीब का , बेबस का जो इन जैसे लोगों को अपने खून पसीने से आगे बढ़ाता है । इनकी जेबे भरता है ................पर उसे मिलता है क्या ? यह एक गंभीर विषय है जिस पर सब का ध्यान होते हुए भी निगाहें कुछ और ही देखना चाहती हैं ।

एक ज्वलंत घटना से आप सब को रू ब रू कराना कराता हूँ । कुर्मी वर्ग के लोग आज भी हमारे खेतों में मजदूरी करते हैं जिससे उनका जीवन गांव में रहकर जैसे तैसे चल ही जाता है । परिवार आमतौर पर ठीक ठाक बड़ा ही होता है । जिससे मजदूरी मजबूरी जैसा ही कुछ मान सकते हैं, गेहूँ के खेतों में कटाई जोरों पर थी ऐसे में एक मजदूर भला कितनी जगह पर एकसाथ काम कर सकता है । पर वह बेचारा जो भी कर पाता है करता है । खेतों में काम को ही लेकर एक महाशय ( फौज से सेवानिवृत्त ) ने मजदूर पर इस कदर खफा होते हैं की अपनी खुद की लाईसेंसी बंदूक से उस मजदूर के बच्चे पर वार करते हैं किस्मत से जान बच जाती है । मामला थाने जाता पुलिस आती है आरोपी को जेल भेज दिया जाता है कुछ समय ( करीब ६ महीने बाद ) वही व्यक्ति वापस आता है और इस बार उसकी लड़की से जोर जबर्दस्ती करता है । इस बार वह मजदूर पुलिस को सूचना देने के बजाय बात को दबाना ही बेहतर समझता है (पहले मामले में वह आम सहमती से सुलह हो चुका है ) । बात दब जाती है यहां पर पैसे दे लेकर । कितना कुछ बदला हुआ है आज गांव में पर फिर भी दशा दयनीय ही दिखी मुझे । यह कोई पहली और आखिरी नहीं कुछ न कुछ आये दिन होता ही रहता है नया नया ।

सूचना के कई माध्यम जरूर है पर यह सब अभी क्रांति नहीं ला सके हैं ।

8 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

neeshu yah sab padhkar bahut dukh hota hai.

विवेक रस्तोगी said...

समाज में क्रांति, एक बड़ी क्रांति की जरुरत है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

आर्थिक शोषण सब शोषणों की जड़ है।

हिन्दी साहित्य मंच said...

कहीं न कहीं एक बड़ा वर्ग आज भी शोषित है इन पूँजीपतियों से ।

Udan Tashtari said...

ऐसे शोषण की कथाऐं सुनते रहते हैं, बहुत अफसोस होता है.

Unknown said...

dukhad baat hai aaj k samay me ye sab ho raha hai

शिव शंकर said...

aaj bhi samaj me ye sab ho raha hai

ramesh chand said...

jab tak samaj main rhene walo ki such nahi badlegi tab tak is class ke logo ka soshad hota rhega.is liye hume apni kalam ki takat se is samaj ko jagruk banana hoga.is ke liye phele hume apni mansikta ko ajad karna parega