झारखण्ड में हुए नक्सली हमले में १८ लोगों को जान से हाथ धोना पडा़ ।वैसे यह कोई पहली घटना नही है। इस तरह के विस्फोट करना इन नक्सलियों का उद्देश्य सा होगा है। पर क्या हिंसा के बल पर आज तक कुछ प्राप्त किया जा सका है। तो जवाब है नहीं और न ही इस तरह की कार्यवाही करके ये सफल ही हो घटना में झारखण्ड प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मराडी के बेटे और भाई शिकार हुए। वर्तमान मुख्यमंत्री मधु कोडा ने इस कार्यवाही की भर्त्सना की है। तथा मृतको के प्रति शोक प्रकट किया है। पर यहां पर जो बात सामने आयी है वो है कि सारे आम इस तरह की की आतंकी घटना को अन्जाम देकर भी आज ये लोग खुले समाज में घूम रहें है। और सरकार तथा केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धर कर बैठी है। आखिर कब तक इस तरह के कुकृत्यों को झेलना होगा आम जनता को ।
कुछ ही महीने हुए है कि सांसद सुनील महतो जो झारखण्ड से सांसद थे। उनको भी एक ऐसी ही नक्सली घटना का शिकार होना पडा था। और इस कार्यवाही पर सरकार का वही घिसा पिटा रवैया । केवल संत्वना ही मिलती है घटनाओं से पीडित लोगों को। पर क्या यही समाधान है इस समस्या का । केन्द्र का निराशा जनक प्रयास हमें दुखी करता है । और यदि आज के समय में देखें तो भारत के १८ जिलों में यह बीमारी फैल चुकी है । पं बगाल के नक्सलवाडी गांव से शुरू हुआ प्रयास एक जन आनदोलन के रूप में था ।जो कि जमीदारों के खिलाफ था। जिसका एक सकारात्मक उद्देश्य था। पर आज हम इस आन्दोलन को एक विकृत रूप में पाते है । इसे दुर्भाग्य ही माना जाय की जिस आन्दोलन का कभी दूसरा उद्देश्य था वह आज लोगों के जान का दुश्मन बना है।
1 comment:
बड़ी दुखद घटना है। मरांडी जी के बेटे की चार महिने पहले ही शादी हुई थी।
नक्सली समस्या से जूझने के लिए जिस राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है वो किसी राज नेता में दिखती नहीं. असमान विकास इसकी एक बड़ी वजह है। नक्सलियों को धन अप्रत्यक्ष रूप से सरकार ही उपलब्ध करा रही है. क्योंकि जगह जगह लेवी चुका ठेकेदार और व्यवसायी शांति को खरीद ले रहे हैं। समस्या के सामाजिक हल करने के लिए जिस तेजी से बेरोजगारी उन्मूलन और विकास की जरूरत थी वो झारखंड बनने के बाद कोई भी सरकार कर नहीं पाई है।
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