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Monday, October 15, 2007

वो फिर नहीं आते


सम्मोहित कर देने वाली आवाज से सबके दिलों को सदियों तक सुकन देने का दम रखने वाला अदाकारी और गायकी की दुनिया का जो दमकता सितारा २० साल पहले १३ अक्तूबर के दिन इस जहान को अलविदा कह गया था । वह 'है' मनमौजी हरफन मौला फनकार किशोर कुमार।
४ अगस्त ९२९ को खांडवा (सेट्रल प्राविस एंड बेरार) में अजूबों से भरी इस दुनिया को देखने के लिए पहली बार आंखे खोलने वाले फनकार ने खुद को अभिनय, गायन, संगीत , निर्देशन, शास्त्रीय विधाओं की साधना , स्कीन राइटर , स्क्रिप्ट राइटर, कंपोजर के रूप में मील के पत्थर के तौर पर स्थापित करने के बाद १३ अक्तूबर १९८७ को आखें बंद कर ली।हिन्दी ,मराठी, बंगाली असमी ,गुजराती , कन्नड, भोजपुरी , मलयालम और उडिया भाषा में हजारों गीत गाने वाले किशोर दा ने १९५० से १९७० के दशक में भारतीय फिल्म जगत के क्षितिज पर सुनहरे हर्फों में कामयाबी की जो दास्तान लिखी । उसकी छाप करोडों दिलों पर आज भी देखी जा सकती है।बेरार के जाने- बारे वकील कुंजलाल गांगुली और गौरी देवी की चौथी संतान आभाष कुमार गांगुली ने बचपन में ही उस दौर के सबसे बडें गायक कुदंन लाल सहगल की आवाज की नकल करते हुए गाना शुरू कर दिया था । तब तक उनके बडें भाई अशोक कुमार हिन्दी सिनेमा में स्थापित हो चुके थे।बडे होकर बालीबुड का स्टार बनने का सपना संजोए दादा के पासआने परआभाष कुमार से नाम बदल कर किशोर कुमार रख लिया और बाम्बें टाकीज में कोरस के सिंगर के तौर पर कैरियर शुरू किया।

3 comments:

Manish Kumar said...

शुक्रिया किशोर दा को याद करने के लिए. हाल ही में इस महान शख्सियत के बारे में यहाँ लिखने की कोशिश की थी

यहाँ देखे
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2007/08/blog-post_12.html

Pramendra Pratap Singh said...

बढि़यॉं लेख है। बधाई

Pramendra Pratap Singh said...

कृपया सन ठीक करें।