कभी गुस्सा ,तो कभी प्यार
आखिर मैं क्या समझूँ इसे?
कभी खुद ही न बात करना
और फिर
कभी मेरा किसी के साथ बात करने पर नाराज होना,
कभी मेरे साथ रहना,
और
कभी न मेरे पास आना,
कभी मुझको अपने हाथों खिलाना,
और
कभी न मेरे साथ खाना।
आखिर मैं क्या समझूँ इसे?
कभी मेरे साथ चलती हो दूर तक ,
और फिर
कभी देती नहीं हो दो कदमों का साथ।
आखिर मैं क्या समझूँ इसे?
" नहीं कुछ बोलकर बोलती हो तुम सबकुछ,
क्या समझ रखा है मुझे नादां इतना।
तुम भी बडी नटखट हो ये जानता हूँ मैं,
मगर तुम भी हो चुप और मैं भी हूँ चुप।।"
2 comments:
थोड़ा और मेहनत करो पोस्ट करने के पहले. कई कई बार पढ़ो अलग अलग अंतराल पर लिखने के बाद..निश्चित कुछ कमियाँ खटकेंगी-कुछ बेहतर शब्द जुड़ेंगे और कुछ अनावश्यक अलग हो जायेंगे.जब खुद को अच्छा लगे, तसल्ली हो ले तभी पोस्ट करो.
-सुझाव मात्र है, अन्यथा न लेना.
-प्रयास अच्छा है और भाव भी उम्दा हैं. लिखते रहो लगातार.शुभकामनायें.
nice expression of feelings..simple words,deep emotions..good work
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