करता हूँ तेरा इंतजार आज भी,
उसी पीपल के पेड़ के नीचे,
जहां वादा किया था तुमने मिलने का।
मद्धम - मद्धम हवाओं से लहराती जुल्फों से
तुम्हारे चेहरे को परेशान करते कुछ बाल।
चिडियों की चहचहाहट ,
और
मेरा एक टक तुमको निहारना,
तुम्हारा पास की घास को बेवजह ही उखाडना,
और
फिर न जाने क्यूँ एक लम्बी सांस लेना,
फिर अनन्त आकाश की ओर दूर तक कुछ खोजना ,
न जाने क्या?
वैसे अक्सर तुम ही पहले आया करती थी मिलने के लिए मुझसे,
और
मैं तुम्हें तड़पाने के लिए कुछ देर बाद ही जाता था।
जबकि मैं खुद भी जानता था
इंतजार की लम्बी घडियों को,
जिसमें समय ठहर सा जाता है।
एक -एक पल बिताना ,
कितना मुश्किल हो जाता है,
कितना असहय हो जाता है,
पर फिर भी मैं शरारत करता था तुम्हारे साथ ।
जानबूझ कर गुस्सा दिलाता था तुमको,
मुझे अच्छा लगता था तुम्हारा गुस्सा होना।
तुम्हारा यूँ परेशान होना,
तब तुम रो भी देती थी,
और मैं इसी अदा पर मरता था तुमपे।
कितनी मसूमियत,
कितना भोलापन था तुम्हारे चेहरे में,
वही ढूढ़ता हूँ मैं हमेशा पर,
नहीं दिखता वैसा कोई,
इसी इंतजार में आज भी जाता हूँ,
उसी जगह पर जहां मिलते थे हम दोनों।
और करता हूँ घंटों तक कि शायद आओगी तुम?
पर नहीं आओगी तुम जानता हूँ
फिर भी दिल नहीं मानता हैं,
और
बार- बार देखता है तुम्हारी वो राह जिधर से आती थी तुम।।।।।।।
उसी पीपल के पेड़ के नीचे,
जहां वादा किया था तुमने मिलने का।
मद्धम - मद्धम हवाओं से लहराती जुल्फों से
तुम्हारे चेहरे को परेशान करते कुछ बाल।
चिडियों की चहचहाहट ,
और
मेरा एक टक तुमको निहारना,
तुम्हारा पास की घास को बेवजह ही उखाडना,
और
फिर न जाने क्यूँ एक लम्बी सांस लेना,
फिर अनन्त आकाश की ओर दूर तक कुछ खोजना ,
न जाने क्या?
वैसे अक्सर तुम ही पहले आया करती थी मिलने के लिए मुझसे,
और
मैं तुम्हें तड़पाने के लिए कुछ देर बाद ही जाता था।
जबकि मैं खुद भी जानता था
इंतजार की लम्बी घडियों को,
जिसमें समय ठहर सा जाता है।
एक -एक पल बिताना ,
कितना मुश्किल हो जाता है,
कितना असहय हो जाता है,
पर फिर भी मैं शरारत करता था तुम्हारे साथ ।
जानबूझ कर गुस्सा दिलाता था तुमको,
मुझे अच्छा लगता था तुम्हारा गुस्सा होना।
तुम्हारा यूँ परेशान होना,
तब तुम रो भी देती थी,
और मैं इसी अदा पर मरता था तुमपे।
कितनी मसूमियत,
कितना भोलापन था तुम्हारे चेहरे में,
वही ढूढ़ता हूँ मैं हमेशा पर,
नहीं दिखता वैसा कोई,
इसी इंतजार में आज भी जाता हूँ,
उसी जगह पर जहां मिलते थे हम दोनों।
और करता हूँ घंटों तक कि शायद आओगी तुम?
पर नहीं आओगी तुम जानता हूँ
फिर भी दिल नहीं मानता हैं,
और
बार- बार देखता है तुम्हारी वो राह जिधर से आती थी तुम।।।।।।।
2 comments:
fir bhi karta hu intzar ,,,bahut dino ke bad ek sukhad kavya rachna padhne ko mili,,,aasha hai aap apni kalam se aur kuch nutan aur naveen rachna ka srijan karenge,,,waise aap viklango ki problems ko kavya ke madhyam se ek naya rup pradan kare to viklang jagat aapka aabhari hoga,, jai hind
अब पहले परेशान किया है तो उसके परिणाम तो मिलेंगे ही. भाव उम्दा हैं, बधाई.
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