जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Saturday, September 26, 2009

शाम - - - कविता

शाम की छाई हुई धुंधली

चादर से

ढ़क जाती हैं मेरी यादें ,

बेचैन हो उठता है मन,

मैं ढ़ूढ़ता हूँ तुमको ,

उन जगहों पर ,

जहां कभी तुम चुपके-चुपके मिलने आती थी ,

बैठकर वहां मैं

महसूस करना चाहता हूँ तुमको ,

हवाओं के झोंकों में ,

महसूस करना चाहता हूँ तुम्हारी खुशबू को ,

देखकर उस रास्ते को

सुनना चाहता हूँ तुम्हारे पायलों की झंकार को ,

और

देखना चाहता हूँ

टुपट्टे की आड़ में शर्माता तुम्हारा वो लाल चेहरा ,

देर तक बैठ

मैं निराश होता हूँ ,

परेशान होता हूँ कभी कभी ,

आखें तरस खाकर मुझपे,

यादें बनकर आंसू उतरती है गालों पर ,

मैं खामोशी से हाथ बढ़ाकर ,

थाम लेता हूं उन्हें टूटने से ,

और

चुप होकर मैं

फीकी मुस्कान लिये ,

वापस आ जाता हूँ ,

एक नयी शुरूआत करने ।। ,


6 comments:

अनिल कान्त said...

वाह भाई क्या खूब कहा आपने इस रचना के माध्यम से....दिल के एहसास को बयाँ किया है

हिन्दी साहित्य मंच said...

कविता को सजीव कर दिया है आपने । बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सरल शब्दों के माध्यम से । शुभकामनाएं

Mithilesh dubey said...

भाई वाह नीशू जी क्या बात है, आप ने अपने एहसास को लाजवाब तरीके से पिरो कर प्रस्तुत किया है। बहुत-बहुत बधाई

Yogesh Verma Swapn said...

sunder abhivyakti. badhai.

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जी वाह कितनी सहजता से कितनी सरलता से आपने कविता में जान डाल दी बहुत खूब

nitin mishra said...

bahut achi abhivakti hai bhawnaon ki badhai ho.....