बंद करता हूं जब आंखे
सपने आखों में तैर जाते हैं ,
जब याद करता हूँ तुमको
यादें आंसू बनके निकल जाती हैं ,
ये खेल होता रहता है ,
यूं हर पल , हर दिन ही ,
तुम में ही खोकर मैं ,
पा लेता हूँ खुद को ,
जी लेता हूँ खुद को ,
बंद करता हूँ आंखें तो
दिखायी देती है तुम्हारी तस्वीर ,
सुनाई देती है तुम्हारी हंसी कानों में,
ऐसे ही तो मिलना होता है तुमसे अब।।
बंद कर आंखें देर तक,
महसूस करता हूँ तुमको ,
और न जाने कब
चला जाता हूँ नींद के आगोश में ,
तुम्हारे साथ ही ।।
6 comments:
सच्चे प्रेम को प्रर्दशित करती रचना...बधाई...
नीरज
नीशु बहुत चू गया दिल को
नीशु बहुत चू गया दिल को
achi rachna hai badhai ho
बहुत ही सुन्दर रचना प्रेम को दर्शाती हुई ।
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