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Friday, September 4, 2009

बंद करता हूं जब आंखे

बंद करता हूं जब आंखे

सपने आखों में तैर जाते हैं ,

जब याद करता हूँ तुमको

यादें आंसू बनके निकल जाती हैं ,


ये खेल होता रहता है ,

यूं हर पल , हर दिन ही ,

तुम में ही खोकर मैं ,

पा लेता हूँ खुद को ,

जी लेता हूँ खुद को ,



बंद करता हूँ आंखें तो

दिखायी देती है तुम्हारी तस्वीर ,

सुनाई देती है तुम्हारी हंसी कानों में,

ऐसे ही तो मिलना होता है तुमसे अब।।



बंद कर आंखें देर तक,

महसूस करता हूँ तुमको ,

और न जाने कब

चला जाता हूँ नींद के आगोश में ,

तुम्हारे साथ ही ।।

6 comments:

नीरज गोस्वामी said...

सच्चे प्रेम को प्रर्दशित करती रचना...बधाई...
नीरज

Mustkeem khan said...

नीशु बहुत चू गया दिल को

Mustkeem khan said...

नीशु बहुत चू गया दिल को

nitin mishra said...

achi rachna hai badhai ho

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
हिन्दी साहित्य मंच said...

बहुत ही सुन्दर रचना प्रेम को दर्शाती हुई ।