विज्ञापन भी न जाने कैसे कैसे होते हैं ? विज्ञापन शब्द सुनते ही मुझे अखबार का वर्गीकृत विज्ञापन याद आ जाता है । मैं हमेशा ही उस पेज को देर तक देखता हूँ । क्योंकि वही एक पन्ना होता है जहां आपको फ्री हंसी मिलती है ।
कहीं पार्ट टाइम जाब के लिए मिलते हैं हर दिन ५ से १० हजार यानी महीने में ही लखपति होने का मौका । फिर मैं अपने को सोचता हूँ कि पत्रकारिता की डिग्री होने बाद भी ५ हजार मिलना भी मुश्किल हो जाता है । बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं , यहां तो आसानी से लखपति क्या बात है ?
आगे नजर बढ़ाईये तो हंसी थमती ही नहीं बचपन की गलतियां .....जी ये क्या होती है ? हमने तो बहुत की और मार भी खूब खाया पर ये वो नहीं जो हम करते थे । बाबा खुरानी , और सन्यासी जी के द्वारा गारंटी इलाज पता नहीं इनके जाल में कौन फसंता होगा ? विज्ञापन में सबसे प्रमुख लगता है कि नाम बदल लिया है वाला विज्ञापन । बचपन की बात ताजा हो जाती है , जब हम किसी बात पर शर्त लगाते तो कहते कि अगर तुमने ऐसा किया तो हम अपना नाम बदल देंगें पर यहां तो नाम बदलना आसान नहीं । अगर नाम बदला तो विज्ञापन के साथ ।
विज्ञापन का अगल हिस्सा होता है प्रेमजाल से मुक्ति का ............... अरे भई प्रेम न हो तो जीवन भला किस काम का और ये लोगों इसे तोड़ने पर उतारू हैं । ऐसे ही कोई आसान लोन दिला रहा होता है तो कोई कीड़े , मकोड़े साफ करने वाला विज्ञापन और किसी का अंकपत्र खो गया तो किसी को जरूरत है लड़के -लड़कियों की ।
मुझे इस विज्ञापन वाले पेज में कुछ नहीं मिलता................... मिलती है हंसी ।
1 comment:
जिसे हंसी मिल गयी उसे और क्या चाहिये लोग तरसते हैं हंशी को लाखों रु. मे भी हंसी नहीं खरीदी जा सकती और आप हैं कि मुफ्त की हंसी को हज्म नहीं कर पा रहे। तो थोडी हमे दे दीजियेगा । अच्छी पोस्ट है बधाई यूँ ही हंसते रहिये
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