मैं यहाँ किसी भी जाति या सम्प्रदाय की बात नहीं कर रही हूँ। मेरा मन था कि मैं अपना कुछ विचार प्रकट करूँ इसलिए मैं बस कुछ कहना चाहती हूँ। हम हर वक्त ये चर्चा करते रहते हैं कि हमारा देश और देशों से कब और कैसे आगे बढ़ेगा। अरे जिस देश के मंत्री सिनेमा और खेल जैसे विभाग में दख़्लन्दाज़ी करेंगे वो कैसे आगे बढ़ सकता है। आजा नच ले फिल्म में एक गाने में एक शब्द के कारण इतना बवाल मचाया गया। क्या फिल्म बनाने वाले ऐसी कोई भी बात कर सकते हैं जिससे जनता आहत हो?? उन्हें भी पता है कि जो जनता उन्हें इतना दुलार करती है उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाना है। आखिर क्यों ये नेतागण मासूम लोगों के मन में जात-पात का ज़हर घोलते हैं। हमें तो यह ध्यान रखना चाहिए की मानवता से बड़ी कोई जाति नहीं होती है। जब आतंकवाद का हमला होता है तब जो खून बहता है उसमें जाति के हिसाब से खून नहीं बहता है। सबका खून लाल रंग का होता है। आखिर ये बातें क्यों लोगों को समझ नहीं आतीं। जैसे डॉक्टर,इंजीनियर,अध्यापक की पदवी होती है वैसे ही दुकानदार,बावर्ची,सुनार और मोची भी व्यावसायिक पदवी होती है। इसमें किसी जाति को कहाँ आहत किया गया है। दोस्तों हमें अपने विचारों में परिवर्तन लाना ही पड़ेगा तभी हम दूसरे देशों को टक्कर दे सकते हैं। ऐसे मौके पर कबीर जी का एक दोहा याद आता है : ”जे बाह्मन तू बाह्मणी का जाया और राह ते काहे न आया।“ अर्थात् प्राकृतिक नियम सबके लिए एक जैसे होते हैं। मानवता में भेदभाव करने वाले हम ख़ुद ज़िम्मेदार हैं। अपनी इस हालत के ज़िम्मेदार केवल हम हैं और कोई नहीं। और राजनीतिक लोगो6 से भी ये अनुरोध है कि मनोरंजन जगत को तो अपनी राजनीति से दूर रखें।
प्रीति मिश्रा सह संपादक
1 comment:
आपके विचारो से सहमत हूँ आजकल शब्दो पर आधारित खेल क़ी राजनीती चल रही है .कृपया मेरे ब्लाग समयचक्र पर आए .
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