आज सीबीआई जैसी संस्था पर प्रश्नचिन्ह लगना जायज है । कारण स्पष्ट है , जहां हम नाकामयाब होते हैं वहां जरूरत पड़ती है ऐसी संस्थाओं की । परन्तु आप कुछ प्रमुख घटनाओं पर नजर डालें तो सीबीआई भी आम रेलगाड़ियों की तरह ही रो धोकर चल रही है । बीते करीब दो सालों में तीन सौ से अधिक मामलों में सीबीआई नाकाम रही है । और साथ ही जो मामले सीबीआई के पास है उसका निबटारा कब होगा पता नहीं ? अयोध्या मामले पर बना कमीशन जब अपनी रिपोर्ट सरकार तो सौंपता है तो वो भी बड़े गर्व से जबकि तीन महीने की रिपोर्ट को देने में १८ साल लगते हैं । यह हमारी व्यवस्था पर एक सवाल है , सवाल उठता विश्वनियता पर ।
मुख्य मुद्दा निठारी कांड की बात की जायें तो जो माना जा रहा था वही हुआ । सीबीआई ने तो पहले ही अपना समर्पण कर दिया था । आखिरकार पढ़ेर को बरी किया गया । दूसरा मुद्दा आरूषि मर्डर केस पर सीबीआई ने जो किया वह असफलता को इंगित करता है । साल साल बीतते जाते हैं और जांच वहीं की वहीं धरी रह जाती है आखिर क्या ऐसी संस्था को उच्च स्तर की सुविधा और कार्य इसी लिए सौपा जाता है कि ये अपनी मनमानी करें । जनता के प्रति कौन जवाबदेह होगा ? सरकार तो हमेशा यह कह कर पल्ला झांड लेती है कि जांच चल रही है । और होता भी वही है परन्तु कोई हल नहीं निकलता है ।
तीसरा मुद्दा है किडनी रैकेट मामला उमें भी सीबीआई कुछ खास दिलचस्पी नहीं ले रही है । जिससे अपराध करने वाले सीना फुलाये घूम रहे हैं । और चौथा मामला एसीपी राजवीर हत्याकण्ड जिसमें सीबीआई क्या कर रही है कुछ पता नहीं ?
जिस प्रकार से हम सीबीआई को देखते हैं सुनते हैं वह उसके विपरीत ही दिखाई पड़ रही है । जांच समिति बदल के क्या होगा इसका जवाब क्या इस संस्था के पास है ? जवाब यही मिलेगा कि हां हम प्रयास कर रहे हैं । अदालत में सबूत के आभाव में अपराधी बरी हो रहें हैं फिर से ऐसे गुनाह के लिए अपनी आजमाइश कर रहें हैं । समाज में कुछ बदलाव एक दिन में नहीं होता पर ऐसे ही अगर ये उच्च स्तरीय संश्थाएं कार्य करती रही तो न्यायपालिका भी कुछ न कर सकेगी ।
6 comments:
सी बी आई तो सिर्फ़ जनाक्रोश पर लगाने वाला मल्हम भर बस है जो समय के साथ-साथ दर्द के कम होने का एहसास भर कराता है।सी बी आई के एक मामले मे मै भी गवाह हूं छः साल से ज्यादा हो गये मामला शुरू भी नही हो पाया है क्योंकि उसमे आरोपी कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री है।
अनिल जी की बात से सहमत हूंम मगर सरकार कोई भी हो हर सरकार इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिये ही करती है। बहुत बडिया मुद्दा उठाया है धन्यवाद्
मुद्दा बहुत ही विषयगत है । सीबीआई तो सरकार की गुलाम सी लगती है ।
आपकी बात से सहमत हूँ अनिल जी ।
हर जगह पैसे और पहुंच का बोलबाला रह गया है !!
सही कह रहे है..कार्य प्रणाली देखकर अफसोस होता है.
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