जन संदेश
Thursday, September 3, 2009
मीडिया की गोद में चलती है ज्योतिष की दुकान -आलेख ( रेखा .के .मेहता )
कंचन कामिनी की चाहत तो सभी को होती है , कंचन अर्थात सोना, धन दौलत , कामिनी इन्द्रिय अथवा भौतिक सुख-कीर्ति यानि यश , मान सम्मान । देखआ जाये तो सारी दुनिया ही इस कंचन , कामिनी कीर्ति के आसपास घूमती है । हर आदमी अपने- अपने तरीके से इनको हासिल करने का प्रयास करता रहता है । मजा तब आता है जब यह तीनों चीजें एक जगह सिमट जाती हैं आदमी अपने एक प्रयास से तीनों को हासिल करता है आजकल यही तीनों टेलीविजन मीडिया में सिमट गये हैं ।क्या बड़े नेता , क्या अभिनेता , क्या खास आदमी और क्या आम आदमी , बच्चे , औरत , बूढ़े सभी का लक्ष्य टेलीविजन मीडिया है । पहले बच्चों को परम्परा , स्कूली ज्ञान आदि सिखाया जाता है , लेकिन बच्चा जरा बड़ा हुआ कि मां बाप इस कोशिश में लग जाते हैं कि जल्दी से जल्दी हमारा बच्चा विश्व विख्यात हो । वह यह भूल जातें हैं कि अनके मौलिक ज्ञान का हास हो रहा है । बहरहाल हम दुनिया की और बातें करें । और बातें तो और लोग भी कर सकते हैं । हम ज्योतिषियों से जुड़ी बातें करते हैं । इसलिए कि ज्योतिष को भी अपना लक्ष्य टिलीविजन , मीडिया में सिद्ध होता दिखाई दे रहा है । देव, देवियां और क्या कांतिलाल , क्या बाबूलाल सभी टौलीविजन की गोद में जा बैठे हैं । इस टिलीविजन मीडिया का दुलार उन्हें ऐसा रास आया है कि वह ज्योतिष की भाषा भूलकर टेलीविजन की भाषा बोलने लगें हैं । अच्छे विश्व प्रसिद्ध ज्योतिष आजकल टी.वी पर ज्योतिष सामग्री - नग धड़ल्ले से बिकवा रहे हैं । शायद ज्योतिष से भी अच्छा मुनाफा उन्हें दुकानदारी से होगा तभी वे ऐसा कर रहे हैं । इसमें सामग्री विक्रेता , टेलीविजन और ज्योतिष तीनों का भरपूर फायदा है । जरा भी नुकसान नहीं । खरीदने वाले को इसका कितना फायदा या नुकसान होगा वह खरीदनेवाला ही जाने। टेलीविजन पर खुलेआम ज्योतिष के सिद्धान्तों की धज्जियां उड़ायी जाती है और देखने वालों को ऊलजलूल मगर आकर्षक भाषा में परोस दी जाती है । अगर कहीं एक दो भूल हो तो गिनवा भी दें । यहां तो आग का दरिया है और डूब के जाना है । इस तरह से टी.वी चैनल ने काफी संख्या में ऐसे बाबाओं की खुली भर्ती करते हैं जो ऐसा कर सके और दुकान ठीक से चला सके ।
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4 comments:
सही व्याख्या की है .. दुकान ही चलती है .. तभी तो व्यावसायिक ज्योतिषियों को जगह मिल पाती है इसमें .. प्रतिभावानों को नहीं !!
BAHUT KHOOB. LEKH AUR BHASHA DONO KE LIYE MUBARAK.
VAKAY RACHNA AATI UTAM.
DHANYAVAD
अब क्या कहा जाए! बस हर कोई इन्सान के अन्दर बसे डर को उभारकर अपनी जेबें भरने में लगा हुआ है!!!!
क्या कहे ! इस बाजारवाद में सब संभव है |
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