आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मैं,
न मनाऊगा तुमको,
इस बार मैं।
तुम्हारा उदास चेहरा,
जिस पर झूठी हसी लिये,
चुप हो तुम,
घूमकर दूर बैठी,
सर को झुकाये,
बातों को सुनती,
पर अनसुना करती तुम,
ये अदायें पहचानता हूँ मैं,
आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मैं।
नर्म आखों में जलन क्यों है?
सुर्ख होठों पे शिकन क्यों है?
चेहरे पे तपन क्यों है?
कहती जो एक बार मुझसे,
तुम कुछ भी,
मानता मै,
लेकिन बिन बताये क्यों?
आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मै।।
6 comments:
बहुत ही उम्दा रचना व लाजवाब अभिव्यक्ति।
एहसास की सुन्दर रचना
्बहुत सुंदर रचना जी.
धन्यवाद
बहुत खूब कहा आपने ...बधाई
नाजुक अहसास की कविता ! क्या अब भी खफा है कोई ? तब तो आप भी खफा हो जाइए !
Nishu ji Kavya sarahniya hai.
Badhai
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