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Monday, October 5, 2009

कोशिश - (कविता )

नन्ही आशाएं ,

दृढ़ निश्चय,

कुछ करने का जज्बा,

लिए हुए,

कोशिश करता हुआ वो आदमी,


सड़को के किनारे रेंग कर चलता,


हाथ में कुछ गंदी बोतलें

और

एक छोटा झोला लिये,


मेरे सामने से गुजर जाता है ,


बस के इंतजार में खड़ा देखता हूँ उसको,


दूर से आते ,

और

सामने से दूर जाते,

कितना बेबस है,

फिर भी,

चेहरे पे एक सिकन भी नहीं ,


हां कुछ पसीने की बूँदें,


और

कचरे की बदबू के सिवा,


शरीर पर फटे कपडें

गंदे मैंले है ,

शायद न धुला होगा कई दिनों से,

कितना साहस मन में लिये,

करता है ये काम ,


पूरी लगन से ,


पूरी मेहनत से,


कितना अलग है ये ,

उन सभी से ,

जो इसके जैसे हैं,


चाहता तो न करता कुछ ,

बैठा कहीं मांगता भीख,

किसी किनारे पर ,


मिल जाता पेट पालने को कुछ न कुछ,

पर


नहीं मानी हार,


करता है प्रयास ,

जिंदगी की जंग से

और

खुद से भी।

1 comment:

मुकेश कुमार तिवारी said...

नीशू जी,

नियति के खिलाफ संघर्ष ही जीवन है नही तो यथास्थिती में बने रहने के लिये जो भी है जैसा भी है भाग्य है, नियति का लिखा है समझकर या तो जिन्दगी से भागा जा सकता है या भीख मांगी जा सकती है या ईश्वर के नाम पर रोया जा सकता है।

एक विश्वास और आशा से भरि कविता स्वस्फूर्त ऊर्जा देती है।

बहुत अच्छी लगी यह कविता।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी