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Sunday, October 4, 2009

"विश्वास नहीं होता, लेकिन सच है"

विश्वास तो नही होता लेकिन करना पङ रहा है, शायद आप भी पढने के बाद विश्वास कर लेंगे। क्या आपको पता है विकसित देशो में जितना खाना बर्बाद होता है उससे 1.5 अरब लोगो का साल भर तक पेट भर तक सकता है जी हाँ सही सुना आपने। इन देशो की सूची मे अमरिका और ब्रिटेन सबसे आगे है, यहाँ संपन्न लोग रेस्त्रां मे थोङा बहुत खाना शेष छोङ देते है। वे एक छङ के लिए भी नही सोचते कि इस भोजन को बनाने मे विभिन्न स्तरो पर कितनी मेहनत करनी पङी होगी। यदि इस बचे हुए भोजन को गरिब लोगो को खिला दिया जाता तो इसका सदुपयोग हो जाता। अगर देखा जाये तो हम भी इससे कम नही है हमारे घर से भी न जाने कितना खाना प्रतिदिन कूड़ेदान मे जाता है।
अगर हम अपने अतीत को देंखे तो हमे इस बात का एहसास होगा की जो हम कर रहें है वह कितना भयानक हो सकता है। मैं आपको लोगो बताना चाहूंगा कि 1840 के दशक मे आयरलैंड मे अनाज की कमी के कारण हजारो लोग मौत के मुंह मे समा गये थे, । खाना बर्बाद करने वाले शायद यह भूल जाते है कि 1950 के दशक मे यूरोप और एशिया के कई देशो मे भयानक अकाल पङा था, जिस कारण हजारो लोगो की मौत हो गई थी। विवाह समारोह मे भी खाने की बर्बादी जोर सोर से होती है, इस बर्बादी को रोकने के लिए विनोबा भावे की दत्तक पुत्री निर्मला देशपाडें ने कुछ लोगो को मिलाकर एक ग्रुप बनाया, इनका कहना था कि जितना हम खा सकें उतना ही खाना लें , और जो खाना जूठा ना हो या जो बचा हो उसे किसी अनाथयालय या गरीब बस्तियों में भेज दी जाये,। लेकिन अफसोस निर्मला जी का निधन हो गया और ये प्रयास सफल न हो सका। बात जब भोजन की बर्बादी की आती है तो बङा दुःख होता, उत्तर प्रदेश व बिहार मे अब भी मृत्यु के बाद तेरहवाँ करते है और उसमे ना जानें कितना भोजन का नुकसान होता है। दुःख तब और होता है जब ये लोग इस दिखावे के लिए साहूकारो व मंहाजनो से रुपये ऊधार लेते है, और वे कर्ज अदा करते-करते चले जाते है, और उनकी भावी पीढी़ उस कर्ज को भरने मे लग जाती है।
कर्ज का बोझ पीढी़ दर पीढी़ चलता रहता है और अंत मे उस किसान को शहर जाकर मजदूरी करने को मजबूर होना पङता है। क्या समाज के ठेकेदार इस गंभीर समस्या पर कभी ध्यान देगें।
विकासशील देशो के जागरुक लोग यदी इस बात को जल्द ही ना संमझे तो उन्हे इसका गंभीर परीणाम देखने को मिल सकता है। यदि भोजन की बर्बादी अविलंब नहीं रोकी गई तो वह दिन दूर नहीं जब संसार के विभिन्न देशो को पहले की तरह ही अकाल का सामना करना पङेगा।

2 comments:

अर्कजेश Arkjesh said...

भोजन पानी सबकी ऐसी ही बर्बादी होती है । कोई रोशनी को तरसता है, कोई सूरज दबाकर सोता है ।

राज भाटिय़ा said...

नही भाई युरोप मे लोग इतना खाना खराब नही होता, जितना हमारे यहां होता है, युरोप मे लोग होटल मे बचा ख्नाना घर के लिये पेक करवा लेते है, हमारे घर मै भी कभी हम खाना बरबाद नही करते, बची हुयी सब्जियो की हम पारोठिया बना लेते है, या चाबल के संग खा लेते है, या हमारा कुता बहुत चाव से सब्जियां खाता है, या फ़िर हम चिडियो ओर बत्त्खो को खाना ( रोटी, बरेड) वगेरा डाल देते है.
क्योकि यहां लोगो को खाने की कीमत पता है,