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Monday, October 5, 2009

"पुरुष तो पुरुष................ महिलायें भी कम नही"



सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर रोक का कानून बने या आदेश जारी हुए भी काफी अरसा हो गया है, परंतु स्थिति बदतर होती जा रही है। विश्वभर में सिगरेट पीने वालों में से १२ फीसदी भारतीय हैं। ये आँकड़े चौंकाने वाले हैं कि धूम्रपान करने के संदर्भ में अगर वैश्विक स्तर की बात की जाए तो भारतीय महिलाओं का स्थान तीसरी पायदान पर है।

आँकड़े बताते हैं कि भारत में धूम्रपान करने वाली ६२ फीसदी महिलाओं की मृत्यु ३० से ४९ वर्ष की आयु में हो जाती है। "भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद" के अनुसार भारत में २५-६९ वर्ष आयु वर्ग के लगभग ६ लाख लोग प्रतिवर्ष धम्रपान के कारण मृत्यु का शिकार होते हैं। अध्ययन के मुताबिक २०१० के दशक में प्रतिवर्ष धूम्रपान करने वाले १० लाख लोगों की मृत्यु होगी।

धूम्रपान सेहत के लिए किस कदर हानिकारक है यह तथ्य उन आँकड़ों से सिद्ध होता है, जो कि चेन्नाई में एपिडेमियोलॉजिकल रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आए हैं। इसके अनुसार भारत में तपेदिक से मरने वाले पुरुषों में ५० प्रतिशत धूम्रपान के कारण मरते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के जून ०८ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय बच्चों में धूम्रपान तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और ६ वर्ष की आयु तक के बच्चे इस लत के शिकार बन चुके हैं।

धूम्रपान के घातक परिणामों को देखते हुए विश्वभर में धूम्रपान प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया पिछले कुछ दशकों से अनवरत जारी है। २००३ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के सभी सदस्य देशों ने पूरी दुनिया में तंबाकू निषेध के लिए सर्वसम्मति से फ्रेमवर्क कन्वेंशन (संधि) को स्वीकार किया। इसके तहत एक छः सूत्री एम-पॉवर पैकेज की घोषणा की गई। इस एम-पॉवर पैकेज में वैश्विक और देशों के स्तर पर धूम्रपान और उसके दुष्प्रभावों के संबंध में प्रभावी निगरानी तंत्र विकसित करने, कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थलों में धूम्रपान पूर्ण प्रतिबंधित करने की व्यवस्था है, पर कितनी कारगर सिद्ध हुई हैवह जगजाहिर है।

समस्या का एक और पहलू है कि भारतीय कानून में तंबाकू कंपनियों को उनके उत्पादों के विज्ञापन की अनुमति नहीं है। ऐसे में कई बड़ी कंपनियों ने छद्म तरीके से अपने उत्पादों के प्रचार का रास्ता अपना लिया है। जहाँ एक ओर सिगरेट बनाने वाली कंपनी वीरता पुरस्कारों की आड़ में अपने ब्रांड का प्रचार करती है, वहीं दूसरी ओर एक और कंपनी अपने अपने ब्रांड के खुले प्रचार के साथ दिल्ली और मुंबई में हर साल बड़े स्तर पर फैशन शो आयोजित करती है। ये कंपनियाँ और भी तरह-तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं।

इस हालत में भला यहकैसे सोचा जा सकता है कि धूम्रपान के प्रति आकर्षण कम होगा। माना कि तंबाकू से सरकार को भारी मात्रा में राजस्व मिलता है, परंतु देश की युवा पीढ़ी की कीमत परआर्थिक मुनाफा उचित नहीं है। जब "भूटान" जैसा छोटा देश अपने आर्थिक हितों को त्याग कर तंबाकू उत्पादों की बिक्री पूर्ण प्रतिबंधित कर सकता है तो भारत क्यों नहीं?

4 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

मित्र महिलाओं को कम मत आकियें इन्‍हे तो दो कदम तेज चलना ही चाहिये, तभी तो ये पुरूषो से तेज दिखेगी

Mithilesh dubey said...

जी हां बराबरी का दर्जा तो मिलना ही चाहिए और हो सके तो आरक्षण भी देना चाहिए कि इतने प्रतिशत महिलाओं को धूम्रपान करना आवश्यक है । हाई फाई दिखना भी तो जरूरी है ।

हिन्दी साहित्य मंच said...

कहीं न कहीं पाश्चात्य देशों की देखा देखी कर भारतीय महिलाएं ऐसा कर रही है जो किसी भी तरह से सही तो नहीं कहा जा सकता । यहां बराबरी करना सही नहीं ।

ab inconvinienti said...

अच्छा है.... वैसे भी धुम्रपान करने वाले, शराब पीने वाले, मादक पदार्थों का सेवन करने वाले बुरे और अनैतिक लोग होते हैं. इन्हें पीते रहने दें तो कुछ जनसंख्या घटेगी. बस सरकार को इतना करना है की सिगरेट-शराब के कारन हुई बीमरियों में एक भी पैसे की सहायता न करे, बल्कि उन्हें और महंगा कर दे.