जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Sunday, October 11, 2009

आज तुम फिर मुझसे खफा हो .........जानता हूँ मैं

आज तुम फिर खफा हो मुझसे,

जानता हूँ मैं,

न मनाऊगा तुमको,

इस बार मैं।

तुम्हारा उदास चेहरा,

जिस पर झूठी हसी लिये,

चुप हो तुम,

घूमकर दूर बैठी,

सर को झुकाये,

बातों को सुनती,

पर अनसुना करती तुम,

ये अदायें पहचानता हूँ मैं,

आज तुम फिर खफा हो मुझसे,

जानता हूँ मैं।

नर्म आखों में जलन क्यों है?

सुर्ख होठों पे शिकन क्यों है?

चेहरे पे तपन क्यों है?

कहती जो एक बार मुझसे,

तुम कुछ भी,

मानता मै,

लेकिन बिन बताये क्यों?

आज तुम फिर खफा हो मुझसे,

जानता हूँ मै।।

6 comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत ही उम्दा रचना व लाजवाब अभिव्यक्ति।

M VERMA said...

एहसास की सुन्दर रचना

राज भाटिय़ा said...

्बहुत सुंदर रचना जी.
धन्यवाद

Vipin Behari Goyal said...

बहुत खूब कहा आपने ...बधाई

Arvind Mishra said...

नाजुक अहसास की कविता ! क्या अब भी खफा है कोई ? तब तो आप भी खफा हो जाइए !

S R Bharti said...

Nishu ji Kavya sarahniya hai.
Badhai