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Thursday, May 20, 2010

फहरा दो पताका विश्व पटल पर..........( ये हवा कुछ बहकी बहकी है )....एक विचार

ब्लोगिंग के दौरान बहुत अच्छे लोगों से जुडाव हुआ .....एक दूसरे  की विचारधारा को जानने समझने में  आधुनिक तकनीकी ने सहयोग दिया ...केवल दिल्ली  ही नहीं वरन विदेशों में रहने वालो लोगों से नजदीकियां बनी .....आमतौर पर बाहर  बसे भारतियों छवि मेरे जेहन में खास अच्छी नहीं थी ...उसका एक कारन भी है ...हमको अपनी मातृभूमि के लिए काम करना चाहिए ...जो की किसी और देस में जा कर नहीं हो सकती ....हाँ कुछ गिने चुने लोगों की बात छोड़ दी जाये तो .......ऐसे में अंतरजाल पर मेरी मुलाकात " गुड्डो दादी " से हुई ...पहले तो प्रोफाइल देखा ...जिसमे शिकागो लिखा था यानि  यूएस  .....ईमेल से कई बार बात हुई ...बात कर मैंने पाया की मैं गलत था .....दूर देश बैठी उस महिला में देश के प्रति गज़ब का प्रेमभाव था ...धीरे -धीरे दादी से  बात कर जाना की वे भले ही हिन्दुस्तान में नहीं पर सोच पूरी तरह भारतीय है .....लोग बात करते है संस्कृति की , सभ्यता की , और नारी की .....पर इन सब मुद्दों पर दादी ने तब से लेकर आजतक के बदलाव के सकारात्मक और नकारत्मक दोनों पहलुओं पर विस्तार से बताया ....
आज हम खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते है ......विश्वास नाम की चीज गायब हो गयी है या ये कहें की मानवता मानव में नहीं रही है .....वैसे यह विषय विचारनीय है ....(बहस हो सकती है ) ........या फिर ये कहें की नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है .... इसके कई कारन साफ तौर पर देखे जा सकते है ....
* बदलाव की हवा से भारत अछूता नहीं रहा है .....तो ऐसे में बहुत कुछ परिवर्तन होना संभव है .....नंबर एक तो सोच में ....दूसरा पहनावे में ....(जिसको नारी विरोधी लोग नहीं स्वविकार  करते हैं ) ......तीसरा पहलू एकान्तवाद यानि अलगाववाद या एकल परिवारवाद ....कई और भी बिंदु है पर प्रमुखता पर इस ओर  ही मैंने ध्यान देने की कोशिश की ...
१..........शिक्षा से बौधिक छमता  में बदलाव आया यह सकारात्मक और नकारत्मक दोनों ओर हुआ .......लोगों ने दुनिया में हो रहे बदलाव में खुद को  ढालना चाहा..... जिसे हम नकारात्मक बदलाव इस लिए कहते है क्यूँ की इससमे स्वछंदतावाद दिखाई देता है ......फिर भी ऐसी बहुत सारे  लोगों ने अपनी सोच में बदलाव किया हमारी सोच से आज भी परे है पर उसको हमको स्वविकार करना होगा .
२..........पहनावे में हो रहे बदलाव पर बहुत कुछ कहा जाता है लिखा जाता है ..लोग यहाँ तक भी कहते है की पहले सोच बदले फिर पहनावा लेकिन जिसमे दोनों बदला ली उसको भारतीय संस्कृति का दुश्मन कह दिया जाता है ...अगर महिला या लड़की करे तो वह और भी बुरा है ....( सोच की बात है ) .....पहनावे पर अगर जाएँ तो भारतीय परिधान क्या है ? इस पर न तो आप ही खरे उतरे है और न महिलाएं तो महिला ही कटघरे में क्यूँ खड़ी की जाये ? 
३...........परिवार में विखराव आज की सबसे बड़ी मजबूरी और सबसे जटिल समस्या है ..जिसका प्रभाव वर्तमान में हम सभी देख रहे हैं ....खुशियाँ चहरे  पर झूठी दिखाई पड़ती है ....बच्चों  का बचपन थम सा गया ...दादा दादी को आधुनिकता का कलंक मान लिया गया ....हस्ती जिंदगी मे सब कुछ दिखावे ने ले लिया .....पैसे है पर संतोष और शान्ति गायब है .....प्यार विखर गया ....
अब इसे हम सवीकार करें या फिर प्रतिकार ? यह जटिल प्रश्न है ?
इस सामाजिक उथल पुथल के लिए कौन से कारक  जिम्मेदार आप समझते है ? स्वागत है आपके विचार का / 
 
 

3 comments:

Unknown said...

अच्छा लगा बांच कर..............

जय हो !

Unknown said...

bahut sahi likha aapne ..mai aapse poori tarah sahmat hun. badlav ko hamko samajhna hoga .........apni dakiyanushi soch ko badalna hoga ..nari virodhi soch ke htana hoga tabhi kuch sambhav hai ....bahut bahut aabhar aapka neesho ji ....

honesty project democracy said...

हर सार्थक और ईमानदारी भरे प्रयास की सराहना जरूर करनी चाहिए ,चाहे वह कोई भी क्यों न कर रहा हो / विचारणीय प्रस्तुती / निसू जी आज हमें सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html