मेरे कोरे दिल की कल्पना हो तुम,
कविता में पिरे
शब्दों की व्यजंना हो तुम,
मर्म-स्पर्शी नव साहित्य की
सृजना हो तुम,
नव प्रभा की पथ प्रदर्शक
लालिमा हो तुम,
मेरे कोरे दिल की कल्पना हो तुम,
स्वप्न दर्शी सुप्त आखों में
बसी तलाश हो तुम,
सावन की कजरी में घुली
मिठास हो तुम,
चन्द्र नगरी के चन्द्र रथ पर
सवार एक सुन्दरी हो तुम,
रस भरे अधरों के अलिंगन की
कल्पित एक स्वप्न परी हो तुम,
मेरे कोरे दिल की कल्पना हो तुम ...........
3 comments:
shabdon ka umda chayan aur sundar bhavo ki abhivyakti...
बहुत दिन बाद ब्लाग पर आयी कविता पढ कर अभिभूत हूँ दिन पर दिन कविता मे खूब निखार आ रहा है। बधाई और आशीर्वाद्
Bhai Waah !
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