जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Wednesday, May 19, 2010

" बात निकली है तो दूर तलक जाएगी .....(तो ब्लॉग लिखना गुनाह है क्या ? ).....एक विचार

1......मेरी बात 
ब्लॉग पर मेरी लिखी पिछली पोस्ट (क्या मर रही है ब्लागिंग???............एक विचार) पर जो कुछ भी हुआ वो शर्मनाक है.....वैसे भी विवाद खड़ा करना आदत सी हो गयी ...मैंने किसी को निशाना नहीं बनाया था ...पर कुछ बंधुओं को बुरा लगा ...मैंने सम्मलेन में " खाने खिलाने की बात क्यूँ की इसको किसी ने न जानना चाहा ? बेनामी से कमेन्ट आये ...सीधा आरोपित मुझे किया जा रहा है...मुझे इसका जरा भी मलाल नहीं है ..सभी अपनी राय देने को स्वतंत्र है ...मुझे पाबला जी संवैधानिक कारवाई की चेतावनी दे रहे है . यह कदम स्वागत योग्य है ..अगर ऐसा होता है तो यह कुछ न कुछ सकारात्मक बिंदु को आगे लेकर ही आएगा ... बात इपी एड्रेस की हो रही है. मैं तो चाहता  ही हूँ की .....ये राज खुले ...रही बात मेरी तो मैं अपनी बात पर कायम हूँ और रहूँगा ...बाकि आपको क्या करना है ये आप अच्छे से जानते है ? .
ब्लॉग पर लिखना गुनाह है या फिर अपनी बात कहना ? कुछ ने स्वतंत्रता और स्वछंदता में अंतर को बताया है ....इस सबसे परे एक बात की " कुछ तो लोग कहेगे , लोगो का काम है कहना ....
कुल मिलाकर पोस्ट निरर्थक हो गयी . जिस विषय पर  बात होनी  चाहिये थी वो बात ही  दब गयी ...अक्सर ऐसा ही होता है की हम अपनी बात को सही तरीके से नहीं रख पाते ....यही पिछली  पोस्ट में मुझे देखने को मिला ....  
2 .......मैं क्यों लिखता हूँ ?
ब्लॉग का दूसरा रूप अभिव्यक्ति है ..लेकिन यहाँ पर मैंने जो देखा वो तो इसके बिलकुल विपरीत है  ...मेरे विचार से कोई सहमत हो ? ....मैं ये भी नहीं चाहता .....पर हाँ जो बात सही हो उसको कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं है..... मैं अपने लिए लिखता हूँ और अगर किसी को ये बुरा लग रहा हो ......ऐसा हो सकता है..मुझ से ज्यादा लोग बेनामी पर जब विस्वास करते है तो कहना ही क्या ? आखिर सवाल ये है की जो बात कोई बेनामी कह रहा है वो हममें से ही एक है .. इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता है. ...तो क्यों न इस नकाब को उतारने  की कोशिश करें ...
आखिर में आप अपनी बात बेबाकी से कहिये ...जिसका मई स्वागत करता हूँ ...चाहे  वो मेरे विरोध में ही क्यूँ न हो ...   
3......सीधा सपाट 
चलते_ चलते शेर की ये लाइन याद आ रही है की " बात निकली है  तो दूर  तलक जाएगी .....

16 comments:

honesty project democracy said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

neeshoo ji , aapki kal wali post maine padhi .. ussme kuch bhi aisa nahi laga jisse vivad ho ..par jo kuch bhi ho raha hai wah ranniti ke tahat sajish hai ...aap accha likhte hai ...maine aap ko kabhi kisi bhi vibad me nahi dekha ...aap ki likhne aur apni baat ko kahne par koi bhi bandish nahi laga sakta ....yun hi likhte rahe ....

दिलीप said...

yuva kuch likh rahe hain unhe likhne de...unhe vyarth vivaadon me na uljhaayein...kripya agar achchi na lage to sirf tippani ke madhyam se virodh prakat karein...na ki dhamka kar...

राजकुमार सोनी said...

मेरी पाबला जी से लगभग रोज ही बात होती है। वे दिल के बहुत ही अच्छे आदमी है। जरूर किसी ने ऐसी बात कर दी होगी जिससे उनके दिल को चोट पहुंची होगी।
अब एक मजाक-
अब कोई बेनामी उन्हें कही भी प्रवेश के लिए ललकारेगा तो फिर वे नाराज नहीं होंगे तो क्या होंगे।

Anonymous said...

@ neeshoo

आप पुन: एक विवाद को जनम दे रहे यह लिखकर कि

"सीधा आरोपित मुझे किया जा रहा है...मुझे इसका जरा भी मलाल नहीं है ..सभी अपनी राय देने को स्वतंत्र है ...मुझे पाबला जी संवैधानिक कारवाई की चेतावनी दे रहे है"

हद हो गई! मैंने आपके लेखन पर कोई आपत्ति नहीं की, बल्कि उन बेनामी टिप्पणियों के बने रहने पर एक आपसे आग्रह किया था उन्हें हटा देने का जो आपने हटा कर स्वीकार भी किया। मैंने यही लिखा था 'आपने जो लिखा, वह आपकी सोच, आपकी समझ, आपकी अभिव्यक्ति थी। .. ब्लॉग स्वामी के नाते, बेनामी की टिप्पणी को बनाए रख आप उसकी बात से सहमति जता रहे हैं।'

और अब इस पोस्ट से आप सरासर यह गलतबयानी कर रहे हैं कि मैंने आपके लेखन पर संवैधानिक कारवाई की चेतावनी दी थी। कमाल है!!

बेशक ब्लॉग लेखन एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति का माध्यम है किन्तु शब्दों के चुनाव और शैली का ध्यान रखें।

अविनाश वाचस्पति said...

बेनामी टिप्‍पणियों का आना वैसे ही है। जैसे अपने घर में किसी को भी आने देना। जिन्‍हें आप जानते भी नहीं हैं। वे कोई भी हो सकते हैं और यहां भी वे आपके लिए नुकसानदेह साबित हुए हैं। आप घर का दरवाजा किसी के लिए भी नहीं खोल सकते हैं। खोल कर रखें पर उनकी पहचान तो हो। नहीं तो जैसा गंदा खेल पिछली पोस्‍ट पर खेला गया वैसा ही खेला जाता रहेगा और उसकी जिम्‍मेदारी भी आपकी बनती है।

Kumar Jaljala said...

ब्लाग जगत के भीष्म पितामह ठीक फरमा रहे हैं। बेनामी टिप्पणियों को भी नहीं आने देना चाहिए और बेनामी सपनों को भी।
भला बताए जब बेनामी टिप्पणी जलजला फैला सकती है तो फिर सपने में जलजला क्या कुछ नहीं करता होगा।
बुज्रुर्ग लेखक एवं दादाजी को मेरा वंदन। बारम्बार वंदन। उनके दिव्य भाषण से मैं अभिभूत हुआ हूं।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

नीशू, आपसे फोन पर बहुत लम्बी बात हुई थी और हमें लगा कि आप किस हद तक संजीदा हैं ब्लॉग पर लिखने और सही लिखने को लेकर...
आजकल ये एक तरह से भड़ास निकालने का जरिया बन गया है...सार्थक लेखन के लिए सार्थक अध्ययन भी तो चाहिए जो आजकल कोई भी नहीं कर रहा है.
इसका परिणाम आप खुद देखिये कि किसी विषय पर सामग्री चाहिए हो तो अंग्रेजी साईट पर जाना पड़ता है...हिंदी में सर्वथा आभाव है...
हम भी प्रयास कर रहे हैं...आप भी करिए कि ब्लोगिंग के जरिये इंटरनेट पर हिंदी का सार्थक लेखन बहुतायत में आ जाए....
शेष तो भला होकर ही रहेगा..
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

अविनाश वाचस्पति said...

प्रिय पोते जल, निर्मल रहो, निर्मला के साथ बहो। कम से कम जिन्‍हें दादा मान रहे हो उनके सामने तो अवतरित हो। तुम्‍हारे दर्शनों को दादाजी तरस रहे हैं। कैसे जल हो कि अपने दादाजी को भीष्‍म पितामह की माफिक कीलों की सेज पर लिटाकर जलाना चाहते हो। हो सकता है फूंकना भी चाहते हो। इसमें दोष तुम्‍हारा नहीं हमारा ही है। हमने ही संस्‍कार गलत दिए हैं अपने पुत्रों को फिर वे ही अगर पुत्रों के पुत्र यानी पोतों में फलीभूत हो रहे हैं तो दोषी तो हम ही हुए न।
और रही बेनामी सपनों की बात। जब बेनामी ही नहीं रहेंगे पोते हमारी आंखों में बसेंगे तो बेनामी सपने खुद ब खुद आने बंद हो जाएंगे। फिर सपने नामी आया करेंगे। पर इस बात की गारंटी दे सकता हूं कि वे सूनामी नहीं बरपायेंगे। अगर हो गए हो सचमुच में अभिभूत तो अभी भूत योनि यानी बेनामी पने से बाहर आ जाओ। सबके सामने नहीं आना चाहते तो अपने दादा भीष्‍म पितामह की ई मेल avinashvachaspati@gmail.com पर तुम्‍हारा दिल से स्‍वागत है। निश्चित ही एक दिन मेरा स्‍थान तुम ही लोगे। ऐसा मुझे बोध हो रहा है। पर कहीं तुम्‍हें तो क्रोध नहीं आ रहा। आ भी रहा है तो संयम को थामे रखना। किसी टिप्‍पणी में नहीं मेरे मेल पर क्रोध जाहिर कर देना तो निश्चित जानना कि मैं उसे सार्वजनिक नहीं करूंगा। इतना तो भरोसा कर ही सकते हो अपने बुजुर्ग बारंबार वंदनीय कीलों की नोकों पर लिटाए गए अपने भीष्‍म पितामह को।

Unknown said...

सब मिलकर आतंकवादियों व उनके समर्थकों के विरूद्ध लिखो जी सब ठीक हो जायेगा।

Unknown said...

सब मिलकर आतंकवादियों व उनके समर्थकों के विरूद्ध लिखो जी सब ठीक हो जायेगा।

Unknown said...

सब मिलकर आतंकवादियों व उनके समर्थकों के विरूद्ध लिखो जी सब ठीक हो जायेगा।

Kumar Jaljala said...

1-दादाजी नाराज हो गए
2-दादाजी को इस बात की बहुत चिन्ता है कि उनका पोता कौन है.
3- जब आपने मान ही लिया है कि मैं आपके बेटे का बेटा हूं तो फिर चिन्ता क्यो
4-संपत्ति पर हिस्सा नहीं मांगूगा
5-दादाजी भीष्म पितामह है.
6-उन्हें लगता है कि मैं उन्हें कांटा लगाकर चला गया हूं।
7- मैं भला क्यों कांटा लगाऊंगा।
8-दादाजी लगातार गा रहे है-कांटा लगा हाय लगा
9-दादाजी आजकल बहकी-बहकी बातें करते हैं।
10- बोलते हैं अकेले में मिलो (क्या दोस्ताना..दोस्ताना करना है)
11- सपना भी खूब देखते हैं।
12- रात को देखते तो समझ में आता.
13 आजकल तो दिन में भी सपना देखते हैं।
14-दादाजी आपको शुद्ध जल के साथ एक खास तरह की बूटी की आवश्यकता है। मैंने मीनाकुमारी से कहा है कि वह बूटी भेज दें... हां ना।
15-बाकी जब तक बूटी ना आ जाए आप बाग-बगीचों में लगने वाले हास्य कल्ब को ज्वाइन कर लीजिएगा.. जबरिया हंसते रहेंगे तब भी थोड़ा-बहुत लाभ पहुंचेगा.
मित्रों भीष्म पितामहजी का ख्याल रखिएगा. बहुत ही कीमती है। एक दिन इनका मंदिर पक्के में बनेगा.सौंगध राम की खाते है हम मंदिर वही बनाएंगे.

राजकुमार ग्वालानी said...

ब्लाग पढ़ने में ही नहीं आ रहा है, ध्यान दें

सलीम खान said...

gre8

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

नीशू जी, इस मसले पर अपनी पुरानी बात कहना चाहूँगा...

http://sulabhjaiswal.wordpress.com/2009/11/18/hindi-blog-grouping/

ब्लोगिंग-कोई-खेल-नहीं