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Saturday, May 8, 2010

पियो सिगरेट ...(कविता )..


पुराणों ने कहा था .सामाजिक कल्याण के लिए ..
असुरो के विनाश के लिए..
महिर्षि दधीचि अपने प्राण तज दिये ..
कलयुगी दधीचि उनसे ..
दो हाथ आगे निकल गए ..
समाज के विनाश के लिए ..
आसुरी भावो के विकास के लिए ..
संजीवनी छोड़ सिगरेट पी रहे ..
सवास्थ्य खुद का व् सामाज का ..
बिगड़ने में आगे निकल गए ..
बूडे समय से पहले हो कर ..
पारिवारिक जिम्मेदारिया से मुह मोड़ कर ..
सारी रिवायातेव से आगे निकल गए ...
दूध और फल खा कर तो ..
हरी गोपाल बन गए ..
सिगरेट पी कर ही ..
हैरी और माईकल निकलते है..
बस और रेल में घर और जेल में ..
सिगरेट सुलगाते जिंदगी निकाल गए ..
जो नहीं पीते उन्हें ताना दे कर ..
हँसी खेल में सिखा गए ..
अगर पैसे न सही ..
फिर भी जिंदगी उधारी से निकल गये..
न मिली सिगरेट तो ..
बीडी सुलगाते जिंदगी निकल गये ..
मेहनत कीसारी कमाई ..
बीडी,सिगरेट की सीढी में चढाते निकल गये..
परिवार की खुशियों को ..
धुएं में उडाते निकल गये..
वो तपस्वी भी क्या थे ..
दान हड्डियों का दे गये..
ऐ तो कलयुग के दघीच..ह
ड्डियों के साथ -साथ ..
फेफडे,गुर्दे भी कुर्बान कर गये ..
साथ परिवार को अस्थमा ..
टी. बी दमा दे निकल गये ..
क्यों कि ..........
धुम्रपान कि राह में खुद ..
कुर्बान हो परिवार को सारे -राह ..
छोड़ निकल गये...