जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Thursday, October 8, 2009

बड़े आये हो ब्लागिंग करने ............अरे दम है तो कुछ अच्छा लिखो न ? ये तुच्छी लोकप्रियता आखिर कब तक ? सुधर जाओ

आजकल जिस तरह से नाम( धर्म )के पीछे पड़े हैं यह बात कुछ समझ नहीं आती । ब्लाग में जिस तरह का कुतर्क किया जा रहा है वह बहस कभी नहीं कही जा सकती है । सभी अपना राग अलाप रहें हैं तो ऐसे में एक सकारात्मक बात-बिवाद विषयगत ब्लागजगत में संभव ही नहीं लगता । सबसे दुखद बात यह लगती है कि कुछ ऐसे ब्लागर आ गये हैं जिन्हें अपना नाम सबकी जुबान पर रखवाना अच्छा लग रहा है । पिछले कई महीनों से यह दुर्दशा देख कर दुख होता है । ब्लाग पर ब्लागर ऐसे मुद्दे लिख रहें - जैसे धर्म की श्रेष्ठा , स्त्री की आजादी , मैं बड़ा की नंगापन .....................और सबसे आसान और तुच्छी बात है " किसी के नाम खुला पत्र । ये सब किस लिये हो रहा है इससे कोई अनजान तो नहीं है । सस्ती लोक प्रियता आखिर कब तक चल सकती है ?????

अरे धर्म पर अगर लिखना है तो कुछ ऐसा लिखो जो एक स्वच्छ संदेश देता हो । ( मतलब तो आप समझ ही गये होगें ) ऐसा नहीं कि टाईटल कुछ हो और अंदर कुछ । इस तरह से धोखा न किया जाय । कोई हिन्दूवादी है या ........इस्लामवादी या कोई और वादी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । पर खुद को बड़ा पाक साफ और अच्छा दिखाना वो भी यह लिखकर कि तुम्हारा धर्म तो मेरे धर्म से खराब है ....................उसमें ये ये खराबियां हैं ...............मैं पूछ़ता हूँ उन लोगों से जो अपने धर्म को बहुत ही अच्छा मानते हैं और अन्य किसी धर्म को नीच कहतें हैं " जब कहीं कोई कमी हो तो उसे दूर करने के लिए कितना प्रयास किया है खुद से ।

दूसरी बात कि ब्लाग पर कुछ भी लिख देना आसान होता है पर जब सवाल जवाब किये जाते हैं तो लोगों को बुरा लगता है , आखिर क्यों ? जब अतिसंवेदनशील मुद्दे को आपने उठाया है तो आखिर जवाब कौन देगा ? जब किसी को मेल कर आप महाशय के प्रश्न करते हैं तो प्रतिउत्तर में गालियों भरा ईमेल मिलता है । क्या यही है ब्लागिंग ? और इसकी मर्यादा ? मैं तो मानता हूँ कि ब्लाग पर जितने भी लोग आते हैं वह सभी शिक्षित होते हैं । ऐसे में इस तरह की तुच्छी हरकत किसी भी तरह से सही और मर्यादित नहीं कही जा सकती ......................खुद से विचार करें तो ही बेहतर होगा ।
मैं तो दुखी होता हूँ यह सब देख कर । लोगों में होड़ मची है कि खूब अच्छा गरमागरम (हाट ) , सेक्सी , भड़काऊ लिखा जाये जिससे मेरा नाम होगा ..................ऐसी भावना को दरकिनार किया जाना चाहिए ।

न किसी को ब्लागिंग से बाहर किया जाय ..........जरूरत है कि हम ऐसे लोगों को खुद से ही दरकिनार कर दें जिससे गंदगी कम फैले । आपकी क्या राय है ?

20 comments:

हिन्दी साहित्य मंच said...

आपने बहुत ही तीखी और सही बात लिखी है । ब्लागजगत में बहुत ही कूड़ा करकट बिखर रहा है । ऐसे में हम सभी को अब सोचना होगा ।

निर्मला कपिला said...

ये जरूरी है कि ब्लाग पर मर्यादायों का ख्याल रखा जाना चाहिये और आपस मे प्रेम भाईचारे का ही संदेश देना चाहिये। मगर ये सब झगडा देख कर दुख होता है कि हर कोई एक दूसरे से आगे निकलने की होड मे है। ऐसे लोगों का वहिश्कार करना ही सही है। जो ऐसे ब्लाग पर टिप्पनी करे उसका भी वहिश्कार करें तभी समस्या हल होगी। जो लिखना चाहता है केवल अपने विचार uउस विशय पर लिखे ना कि किसी पोस्ट का हवाला दे कर लिखे। आभार

Unknown said...

निर्मला जी , आपने सही कहा हमें ऐसे लोगों को दरकिनार करना ही होगा । हम ऐसे लोगों को न पढ़े तो खुद ही समझ आ जायेगा । इसलिए हमारी भी गलती है जो हम इनको पढ़ते हैं और अपनी राय देते हैं । क्यों इसनका तो काम ही यही होता है कि जलाने वाल लिखा जाय ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बौद्धिक जगत में संकर्मण करता एक धार्मिक स्वाइन फ्लू है ये !

Mohammed Umar Kairanvi said...

ठीक कह रे हो ऐसी हैडिंग बनानी चाहिये जैसी तुमने बनायी, जीयो मेरे लाल तरक्‍की करोगे, प्रचारलिंक झेलने की शक्ति रखते हो तो बताना दोबारा आउंगा,
यह ना कहना किया होता है प्रचार लिंक, वर्ना भाई लोग समझ जायेंगे 'इ तो निरा जाहिल से'

L.Goswami said...

जो सार्थक लिख रहे हैं सिर्फ उन्हें ही पढिए ..समस्या खत्म.

Unknown said...

"बड़े आये हो ब्लागिंग करने ............अरे दम है तो कुछ अच्छा लिखो न?"

भई अच्छा ही लिख पाते तो अब तक लिख कर न बताते?

"ये तुच्छी लोकप्रियता आखिर कब तक?"

जब तक चलती रहे तब तक।

"सुधर जाओ"

मूरख हृदय न चेत जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम।
फूलहिं फलहिं न बेत जदपि जलद बरसहिं सुधा॥

Saleem Khan said...

कैरानवी भाई से सहमत

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

रोज रोज ये सब देख कर तो मन में ब्लागिंग के प्रति वितृ्ष्णा सी होने लगी है । जो लोग कह्ते हैं कि हिन्दी ब्लागिंग अभी शैशवावस्था में है--वो लोग शायद किसी बडे भारी भ्रम में जी रहे हैं । वर्तमान के हालातों को देखते हुए तो कोई भी बुद्धिसम्पन् इन्सान झट से बता देगा कि ये शैशवावस्था नहीं बल्कि "मृ्तावस्था" है ओर जो लोग इसकी ऎसी हालत के दोषी हैं,उन्होने तो शायद इसे कब्र तक पहुँचाने की ही ठान रखी है।
चाहे कोई लाख समझा ले,लेकिन इनके कानों पर जूँ नहीं रेंगने वाली.....लगता है कि शायद अभी सब्र का ओर इम्तेहान लिया जाना बाकी है !

SP Dubey said...

यदि रिस्पोन्स न करे तो अपने आप ही थक कर बैट जयेगे इनको महत्व देन हि इन्को जीवन प्रदान करता है मोनम च्कलहो नस्ति

Yogesh Verma Swapn said...

neeshu main aapke vicharon se aksharshah sahmat hun.

दीपक 'मशाल' said...

पंडित वत्स जी से सहमत हूँ, लोग तो ये सोच के चल रहे हैं की बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा. ममता कुलकर्णी की तरह हरकतें करने वाले भाई लोगों उसका क्या हाल हुआ पता होगा आप सबको. बुरा लगे तो क्षमा मांगता हूँ.

Girish Kumar Billore said...

आला फुगडी बाला फुगडी वाला खेला समझ रखा है कुछेक ने
भैया आज ही हमने सोचा है क्यों न घोर उपेक्षा की जाए
सभी सहमत हों तो सभी यह करें बेहतर ही होगा

Girish Kumar Billore said...

See This
ठीक कह रे हो ऐसी हैडिंग बनानी चाहिये जैसी तुमने बनायी, जीयो मेरे लाल तरक्‍की करोगे, प्रचारलिंक झेलने की शक्ति रखते हो तो बताना दोबारा आउंगा,
यह ना कहना किया होता है प्रचार लिंक, वर्ना भाई लोग समझ जायेंगे 'इ तो निरा जाहिल से'

राजीव तनेजा said...

देख के इस सब को...क्या होता है?...

कुछ ना बताएँगे...कुछ भी कहे कोई...

हम तो चुप्पी साधे जाएँगे ...चुप्पी साधे जाएँगे..

अनिल कान्त said...

मैं बिल्कुल सहमत हूँ

प्रवीण त्रिवेदी said...

हम सभी को अब सोचना होगा !!!!

Unknown said...

गिरीश जी , मैंने देखा है ये टिप्पणी -

" ठीक कह रे हो ऐसी हैडिंग बनानी चाहिये जैसी तुमने बनायी, जीयो मेरे लाल तरक्‍की करोगे, प्रचारलिंक झेलने की शक्ति रखते हो तो बताना दोबारा आउंगा,
यह ना कहना किया होता है प्रचार लिंक, वर्ना भाई लोग समझ जायेंगे 'इ तो निरा जाहिल से'"

मोहम्मह उमर कैरानवी जी की अपनी राय है । मैं इससे कतई सहमत नहीं हूँ और जहां तक मेरे लेख के हेडिग की बात है तो मुझे ब्लाग जगत में रहते हुए कुछ साल गुजर चुके हैं । परन्तु अभी जो कुछ नये " दादा " आ गये है ये वो आराम से कर रहें हैं । इसी पर मेरी आपत्ति है । बकरे कीमां आखिर कब तक खैर मानयेगी ।

बवाल said...

१०० प्रतिशत सहमत।

Unknown said...

dost aane patrakarita jagat ke liye baat to ekdum sahi kahi hai per kiya aaj ke patrakar ke liye ye sambhav hai kiyo ki aaj patrakar
ajad nahi hai ...or ye ek kadwa sach hai.