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Friday, October 9, 2009

तड़का लगा हेडिंग का ................................पर लेखन में मसाला कहां है ब्लागर बंधु ............???????? क्या कहते हो ?

भई कुछ लोगों को आजकल गुटबंदी का शौक चर्राया है मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं है । आपका विचार जिस भी तरह का हो उससे प्रेरित लोग आप से जुड़ेंगे । लेकिन गुटबंदी का सबसे बड़ा दुस्प्रभाव तब नजर आता है जब किसी एक ब्लागर के खिलाफ इसका प्रयोग किया जाता है । वैसे सच लिखना , कहना और सुनना वाकई मुशकिल होता है । कभी कोई कोशिश भी करता है तो कुछ एक ब्लागर अपना अस्त्र-शस्त्र लेकर युद्ध को तैयार होते हैं ।

ऐसे में मुझे तो किसी प्रकार की दुविधा नहीं होती है लेकिन देखा जाना चाहिए कि आखिर ऐसे कुतर्कों और व्यंग्यों की जरूरत की क्या है ? और हां ये एक मुख्य बात की बदनाम हुए तो क्या ? नाम हो होगा ही " मगर बंधु अब ऐसे काम नहीं चलने वाला है । खुलकर सामने आये हो तो वार झेलना ही होगा । इस वाक युद्ध में गुटबंदी होने से अपना पक्ष दूसरे से रखवाने के लिए कहना " यही खेल है "

मैं किसी के खिलाफ नहीं हूँ और न ही होऊंगा । सब को अपनी राय व्यक्त करने का पूरा अधिकार है परन्तु ये बात जरूर जेहन में रखकर आपनी टिप्पणी दें कि कोई आपको भी वैसा ही लिखे तो कैसा लगेगा ? पता है मुझे कि अच्छा तो कतई न लगेगा इसलिए ऐसे वर्ताव से बचना ही अच्छा होगा । अगर भड़काऊ , ओछाऔर नंगापन वाला लेख , आलेख लिखना हो तो ये काम कभी भी किया जा सकता है पर ये मेरी फितरत नहीं । बाकी आपक खुद ही समझदार है ।

और रही बात तड़केदार हेडिंग की तो यह कला लेखक अपने लेख में तो कहना कि क्या है ? पर ऐसा कम ही होता है ............ जो कि दुखद है ।



7 comments:

डॉ टी एस दराल said...

वैसे सच लिखना , कहना और सुनना वाकई मुशकिल होता है । कभी कोई कोशिश भी करता है तो कुछ एक ब्लागर अपना अस्त्र-शस्त्र लेकर युद्ध को तैयार होते हैं ।

क्या बात कही है.
इस ऊंची सोच के लिए बधाई.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

तड़का लगा हेडिंग का ................................पर लेखन में मसाला कहां है ब्लागर बंधु ............???????? क्या कहते हो ?


bilkul sahi HEADING di hai bhai........ aur sach kaha aapne is lekh mein........

कुश said...

फ्रस्टू लोग कही भी मिल जाते है.. इग्नोरेंस इज द बेस्ट सॉल्यूशन

राज भाटिय़ा said...

भाई लो आते ही होंगे....

हिन्दी साहित्य मंच said...

आपकी बात से पूरी तरह सहमत हैं । आज हमें जरूरत हैं अच्छे लेखक की ...............वैसे तड़के से ही काम न चलेगा हां छणिक लाभ जरूर मिल सकता है । लोगों को इस तरह की गुटबंदी अच्छी नहीं ब्लाग में । विचार करना होगा हम सभी को ।

अर्कजेश said...

सारान्श यही है की "दूसरे के साथ वैसा बर्ताव मत करो , जैसा तुम अपने साथ नहीं चाहते

डा० अमर कुमार said...




ऒऎ कुश, तुमको कितना रटाया, फिर भी आधा भूल जाता है । अब से याद रहे..
" इग्नोरेंस इज द बेस्ट सॉल्यूशन ऑफ़ पँक्चर्ड माइन्ड्स "