हाल ही में एक्टर इमरान हाशमी ने पाली हिल में घर न मिलने का प्रमुख कारण मुसलमान होना बताया था । इस मामले से जोरदार बहस का नया मंच तैयार हुआ । इमरान की जंग एक तरफ तब दिखी जब बालीबुड के तमाम मुसलमान कलाकारों ने इमरान के आरोप को नकार दिया । मामले को हद से ज्यादा तूल दिया गया । मकान खरीदनें और किराये पर लेने के लिए सबसे ज्यादा दिक्कत तो मिडिल वर्ग को ही होती है । वो चाहे मुसलमान हो या न हो । हां कुछ मामले जरूर सामने आते हैं कभी कभी जहां पर जाति का मुद्दा उठाया जाता है । पर अगर इमारान की बात को सच माना जाय तो क्या वह आज फिल्म इंडस्ट्री में जिस मुकाम पर हैं वहां होते ? तो इसका जवाब है कभी नहीं । या फिर बात नामी एक्टर की बात की जाय तो ज्यादातर मुसलमान ही है । ऐसे में इन सब को सफलता नहीं मिलनी चाहिए थी ।
आतंक की घटनाओं को अगर हम छोड़ दे तो भारत में मुसलमान हमारे सामाजिक ढ़ाचे का एक अहम हिस्सा है जिसके बिना भारतीय समाज अकाल्पनिक सा है । समाज में अगर जाति से जुड़ी हुई ऐसी कोई प्रतिक्रिया होती है तो वहां पर एक आम मुसलमान को भी परंपरा से अर्जित और शिक्षा से परिमार्जित अपने कला - कौशल के जरिये अपने प्रति बाकी समाज का नजरिया बदलना होगा ।
7 comments:
कई बार नाजायज सहानुभूती जुटाने की कोशिश की जाती है....ऐसा सिर्फ मुसलमानों के साथ नही दूसरो के साथ भी हो सकता है....
आपने अच्छा आलेख लिखा।बधाई।
बात नज़रिया बदलने से ही संवर सकती है.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बात नज़रिया बदलने से ही संवर सकती है.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
यहाँ भिन्न भिन्न ब्लोगों पर मुस्लिम जमात के तमाम बुद्धिजीवियों के विचार और प्रतिक्रियाये पढ़कर ऐंसा नहीं लगता कि मानो ये किसी और देश के रहने वाले हो और अपनी कुंठावो को बाहर निकालने के लिए भारत और भारतीयों पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हो !
अगर मकान मालिक ने इमरान हाशमि को अपना मकान बेचने से इंकार कर दिया तो उसे धर्म से जोङकर देखना सरासर गलत है।
पता नहीं क्यूं कुछ लोग हमेशा अपने शूद्र स्वार्थों की पूर्ती हेतु हमेशा धर्म की आड ले लेते हैं!!
बिलकुल सही..दैनिक जीवन में होने वाली परेशानियों को धर्म से जोड़ कर क्यों देखा जाता है..??
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