सपनों के टूटने की खनक से
नींद भर सो न सका
रात के अंधेरे में कोशिश की
उनको बटोरने की
कुछ इधर उधर गिरकर बिखर गए थे
हाँ
टूट गए थे
एक अहसास चुभा सीने में
जिसके दर्द से आँखें भर आई थी
मैंने तो
रोका था उस बूंद को
कसमों की बंदिशों से
शायद
अब मोल न था इन कसमों का
फिर
उंघते हुए
आगे हाथ बढ़ाया था
वादों को पकड़ने के लिए
लेकिन वो दूर था पहुँच से मेरी
क्यूंकि
धोखे से उसके छलावे को
मैंने सच समझा था
कुछ
देर तक
सुस्ताने की कोशिश की
तो सामने नजर आया था
उसके चेहरे का बिखरा टुकड़ा
हाथ बढ़ाकर पकड़ना चाहा था
लेकिन
कुछ ही पल में
चकनाचूर हो गया
वो चेहरा
मैं हारकर
चौंक गया था ....
.........
..................
चेहरा पसीने तर ब तर था
मेरे सपने ने
आज तोडा था मुझको
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