भाजपा के ९वे अध्यक्ष नितिन गडकरी का हालिया बयान " अफजल गुरू ' पर दिया गया......कांग्रेस का दमाद शब्द का इस््तेमाल किया गया ......भाषा और पद की गरिमा दोनों ही नितिन गडकरी को पीछे धकेंलते हैं .....ऐसी प्रतिकिर्या को किसी तरह से सराहा नहीं जा सकता है.........वैसे भाजपा के पिछले कुछ नेतावों की बात की जाये जिस तरह की बातें की गयी उससे भाजपा को नुकसान हुआ है यह देखा जा सकता है की इस तरह के वाकयुद्ध से घटिया राज्नित को बल मिलता है............सबसे पहले आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा......लालकृषण अडवाणी की बात की जाये तो 2005 में पाकिस्तान यात्रा के दौरान पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना को धर्म निरपेक्ष बताए जाने पर संघ के दबाव में आडवाणी को भाजपा अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा.......... और पार्टी को अगले लोक सभा चुनाव में हार का मुह देखना पड़ा ....
उमा भारती को भी पार्टी विरोधी गतिविधि के चलते बाहर का रास्ता दिखाया गया ...और
फिर पार्टी के वरिष्ट नेता जशवंत सिंह की २००९ में जिन्ना पर लिखी किताब ने उनके द्वारा पार्टी की मजबूती के लिए किये गये कार्य भूलकर " दूध से जैसे मख्खी " की तरह बाहर कर दिया गया .......
हाल ही में जसवंत सिंह की पार्टी में वापसी हुई है .......दुबारा से बयान आया की इससे पार्टी को मजबूती मिलेगी ......फिर निकला ही क्यूँ ?
या
इसको राजनाथ , अडवाणी और अरुण जेटली के फैसले की पुर्समिछा कहें .........यानि गलती को सुधारना ..............पर जसवंत को बाहर करने के लिए संघ ने भी भागीदारी निभाई थी ........यानी सुदर्शन जी का फैसला भी जल्दबाजी और आवेश में लिया गया था ........
और
अभी नितनी गडकरी का बयान .......भाजपा इस समय वैसे ही सबसे बुरे दौर से गुजर रही है ऐसे में पार्टी को सोच समझ कर बात बोलनी चाहिए ...क्यूंकि भाजपा का चेहरा बदल गया है .........अब हिन्दू वादी भाजपा नहीं रही ........क्यूंकि भाजपा का गठन निम्न बैटन को लेकर हुआ था .......
भाजपा का निर्माण इतिहास
राष्ट्रों के उत्थान और पतन का दर्शन इतिहास का निर्माण करता है। भारतीय इतिहास के पन्ने संघ परिवार की स्पष्ट और विस्तृत संकल्पना का दिग्दर्शन करते हैं जिसके लंबे संघर्ष की कहानी सभी के लिए प्ररेणा का स्त्रोत है। भारत भारती की महान सभ्यता के गीत श्रीलंका से जावा व जापान तथा तिब्बत व मंगोलिया से चीन और साइबेरिया में गाए जाते रहे हैं। इसकी सभ्यता का आकलन कर हम पाते हैं कि हूण और शकों द्वारा इसकी सभ्यता रक्तरंजित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई लेकिन इसने टूट कर बिखरना नहीं सीखा। इसे जीवंत बनाए रखने मे विजय नगर साम्राज्य, शिवाजी, महाराणा प्रताप तथा गुरू गोबिन्द सिंह के अलावा अनगिनत राष्ट्रनायकों के बलिदान एवम् महानायकों की अक्षुण्ण भूमिका रही है।
हाल के वर्षों में इस महान प्रेरणा की मशाल को लेकर स्वामी दयानन्द, महर्षि अरविंद, लोकमान्य तिलक,तथा स्वामी विवेकानन्द ने ज्ञान का ज्योतिर्मय प्रकाश फैलाया जिसे बाद में महात्मा गांधी तथा अन्य लोकनायकों ने जन-जन तक इसे प्रकाशित किया। इस विरासत को आगे बढ़ाने में डॉ. हेडगेवार की भूमिका महत्वपूर्ण रही जिन्होने 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की। 1940 में में गुरूजी द्वारा इस महान विरासत को आगे पहुंचाया गया। उनके दर्शन में भारतीय मुसलमानों के प्रति कोई दुर्भावना नहीं थी लेकिन वे जानते थे कि इससे पूर्व के शासकों का रवैया दुर्भावनापूर्ण रहा और उन्होने हिंदुओं को मुसलमान बनने के लिए बाध्य किया। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि सभी को न्याय मिले लेकिन किसी एक पक्ष को अनुचित तरीके से खुश करने के लिए दूसरे पक्ष को कुचला न जाए। इसके साथ ही उनका मानना था कि हम हिंदू राष्ट्र थे और हिंदू राष्ट्र हैं और महज़ मज़हबी विश्वास में परिवर्तन का अभिप्राय राष्ट्रीयता में परिवर्तन से नहीं लगाया जाना चाहिए।
हाल के वर्षों में इस महान प्रेरणा की मशाल को लेकर स्वामी दयानन्द, महर्षि अरविंद, लोकमान्य तिलक,तथा स्वामी विवेकानन्द ने ज्ञान का ज्योतिर्मय प्रकाश फैलाया जिसे बाद में महात्मा गांधी तथा अन्य लोकनायकों ने जन-जन तक इसे प्रकाशित किया। इस विरासत को आगे बढ़ाने में डॉ. हेडगेवार की भूमिका महत्वपूर्ण रही जिन्होने 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की। 1940 में में गुरूजी द्वारा इस महान विरासत को आगे पहुंचाया गया। उनके दर्शन में भारतीय मुसलमानों के प्रति कोई दुर्भावना नहीं थी लेकिन वे जानते थे कि इससे पूर्व के शासकों का रवैया दुर्भावनापूर्ण रहा और उन्होने हिंदुओं को मुसलमान बनने के लिए बाध्य किया। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि सभी को न्याय मिले लेकिन किसी एक पक्ष को अनुचित तरीके से खुश करने के लिए दूसरे पक्ष को कुचला न जाए। इसके साथ ही उनका मानना था कि हम हिंदू राष्ट्र थे और हिंदू राष्ट्र हैं और महज़ मज़हबी विश्वास में परिवर्तन का अभिप्राय राष्ट्रीयता में परिवर्तन से नहीं लगाया जाना चाहिए।
पार्टी की विचारधारा में बदलाव किसी भी तरह से फायदे मंद नहीं रहा है...इस बात को गडकरी समझे तो बेहतर होगा ...........और भाजपा को २०१४ के लोक सभा में अच्छे परिणाम दे सकते हैं वरना जस का तस ......
1 comment:
शानदार पोस्ट
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