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Thursday, April 3, 2008

चाय की दुकान पर .................

चाय की दुकान पर सिर्फ चाय ही नहीं मिलती ,
बल्कि
मिलता है सच सोलह आने ।
अखबार के बंड़ल में बंधी ,
समाज की दशा ,
सुबह-सुबह चाय की चुस्कियों के साथ,
चटपटी खबरों के बीच होती है खबर-
बहू को जलाने की,
एक विधवा की अस्मत लूटने की
और
हत्या के हत्यारों की।
शुरूआत होती है दिन की।
दिल दहलता है,
अफशोश भी होता है,
चर्चा भी होती है,
दुख भी होता है ,
चाय की दुकान पर.
हर रोज ही जाता हूँ -आता हूँ दुकान पर,
और देखता हूँ , सोलह आने सच।।

16 comments:

रश्मि प्रभा... said...

वाह,ये १६ आने का सच !
क्या सही चित्र दिखाते हो......

navin said...

आपने इक बहुत सही परिभाषा दी हैं चाय के दुकान की...
क्योंकि चाय की दुकान इक ऐसी जगह हैं जहाँ हर तरह के लोग आते हैं चाय पीते हैं और अपनी अपनी अनकही बातो को सबके सामने कह जाते हैं...
इक तरह से अखबारों के खबरों को कही पे आलोचनात्मक या तारीफ होते हैं तो वो जगह हैं चाय की दूकान .....
जहा पे खबरों को सही तरीके से वृस्तित किया जाता हैं वो जगह हैं चाय की दूकान ...

लेकिन आब जमाना बदल रहा हैं लोगो की निगाहे बदल रही हैं...
आब तो मजा लोगो को चटपटी खबरों मैं ही आता हैं..
युवा हैं तो उसे केवल खेल की की ही खबर भाता हैं...
बुद्धो को अब केवल पेज ३ नजर आता हैं...
लेकिन आपके चिठा मैं हमें पढ़कर बहुत मजा आता हैं...

लिखते रहिये बहुत ही अच्छी सोच हैं और आप सही स्थितियों को देखकर लिख रहे हैं यह पढ़कर हमें बहुत ही अच्छा लगता हैं...

MEDIA GURU said...

bilkul sach kah rahe hai neeshu ji. chay ki dukan ye sab ke aalava bhi kuchh aur bhi dikhata hai . ullekh kijiye.

विश्व दीपक said...

नीशू जी,
आपने चाय की दुकान की बात सही से पकड़ी है। इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता कि हम अपनी दुनिया की जानकारी उसी जगह से अनजाने मे हीं शुरू करते है।
मेरा मानना है कि आप १६ आने सच में और भी बातें जोड़ सकते थे। कविता थोड़ी और लंबी हो सकती थी।
लेकिन हाँ, अभी भी इसमें कोई कमी नहीं है।

आप धीरे-धीरे और भी अच्छा लिख रहे हैं।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Dr SK Mittal said...

बहुत खूब
लेकीन खबरों में होती है मल्लिका सहरावत या ऐश्वेर्या की फड़कती हुई फोटवें
जीन पर खूब चर्चा होती है
वामपंथियों वह कोंग्रेसिओं के परमाणु पर चर्चा के समाचार और धमकियां
जिन को पढ़ कर आम चुनाव की चर्चा में चाय का जायका बढ़ जाता है
कभी सचिन और धोनी के जीतने की खबर से दूसरी चाय व
कभी हार की खबर से प्याला तोड़ने का मन कर जाता है.
सभी नवरसों का मज़ा चाय में नहीं - चाय की दुकान पर खबर पढ़ने में आता है
चाय की दुकान पर सिर्फ चाय ही नहीं मिलती ,
बल्कि मिलता है सोलह आने सच ।
अखबार के बंड़ल में बंधी ,समाज की दशा ,
सुबह-सुबह चाय की चुस्कियों के साथ,
चटपटी खबरों के बीच होती है खबर-
बहू को जलाने की,एक विधवा की अस्मत लूटने की
औरहत्या के हत्यारों की।
शुरूआत होती है दिन की।दिल दहलता है,
अफशोश भी होता है,चर्चा भी होती है,
दुख भी होता है ,
चाय की दुकान पर.हर रोज ही जाता हूँ -आता हूँ दुकान पर,
और देखता हूँ , सोलह आने सच।।

Ashish Maharishi said...

बहुत सुंदर कविता है, बस इस सोच को जिंदा रखना, कभी मरने मत देना

Kavi Kulwant said...

खबरों से तात्पर्य हमारे समाज में सिर्फ नकारात्मकता होती है.. कोई सा भी पेपर, अखबार, पत्र देख लो.. यही सब होता है.. इस्लिए अगर आपको दिन अच्छा गुजारना हो तो अखबार पढ़ना छोड दें... साधू, संतों की भी यही राय है...

nitin mishra said...

bhaisahb bahut sahi baat bahut simit sabdoon me kah gaye aap sabasha

Pramendra Pratap Singh said...

बेहतरीन, आपकी बात से पूर्णत: सहमत नही हूँ, चाय और पान की दुकाने सच के साथ साथ झूठ भी होता है। जो अफवाह का रूप धारण करती है।

vinodbissa said...

बड़ा अच्छा चित्रण है किया है आपने ''चाय की दुकान पर .................'' नामक कविता मे चाय की दुकान के वातावरण का । वास्तव मे चाय कि दुकान पर सारे जहां की खबरें रहती है, यही इक स्थल है जहा से सामाजिक उतार चढ़ाव व कुरितियों का गहराई से अध्ययन किया जा सकता है।

surabhi said...

चाय की दुकान पर सिर्फ चाय ही नहीं मिलती ,
बल्कि
मिलता है सच सोलह आने ।
अखबार के बंड़ल में बंधी ,
समाज की दशा ,
सुबह-सुबह चाय की चुस्कियों के साथ,
चटपटी खबरों के बीच होती है खबर-

खबर तो होती है चटपटी लगाती
पर कभी चाई के गिलास पकड़ते
मासुमो कि तरफ भी नजर डालना
उनके दिल में भी झाकाना
वो भी कुछ सोचता है ये जानना
यू ही लिखते रहना

manas bharadwaj said...

bahi tumko kavi nahi , painter hona thaa............bada acha dekhte ho .............keep up the goof work

Batangad said...

अच्छा लिखा है।

अविनाश वाचस्पति said...

एक सच यह भी है
बत्‍तीस आने गप्‍प भी
यहीं मिलती है
मिलती हैं गप्‍पें
पान की दुकान
पर भी
जगहें तो हैं
बहुत सारी
परंतु कवि‍ की है जिम्‍मेदारी
कि देखे वो दुनिया सारी.

KRAZZY said...

bahut hi achaa vishay hai.aajkal chai ki dukaan samajik vishayon ko baatne ka mahatvpurna hissa hain.isme koi do rai nahin.bahut sunder,lage raho..........

abhi said...

neshoo ji chai ki dukan ka bada hi
sajeev chitran kiya hai.aap ka dekhne ka nazariya kafi paina hai.
mujhe apki likhi kavita achhi lagi.
ek salah dena chahungi vishay ke sath lekhni ko aur bhi zyada paina karein to aur bhi maza ayega.