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Sunday, August 1, 2010

क्या स्त्रीमुक्ति मात्र देह मुक्ति है? ................हिन्दी लेखिकाओं को 'छिनाल' कहने पर विवाद .....आपकी राय क्या है? neeshoo tiwari

"शहर में कर्फ्यू " पुस्तक से हुए विख्यात विभूति नारायण राय के द्वारा दो अखबारों में हिन्दी लेखिकाओं को 'छिनाल' कहने पर विवाद को नया रंग मिल गया है........'छिनाल' शब्द का अर्थ  चरित्रहीन होता है.......विभूति राय ने अपनी बात को और आगे बढाया की देह मुक्ति ही स्त्री मुक्ति जो भी मान रही हैं वह भ्रम में जी रहीं हैं .......जिस पर मैत्रेयी पुष्पा ने विरोध दर्ज कराया है.....उनका कहना है ......महिला लेखन में देह के विमर्श के खुलकर सामने आने को स्त्री मुक्ति की संकीर्ण परिभाषा नहीं मानती हैं.  "इसमें क्या संकीर्ण है कि अगर वो (महिलाएं )अपनी ज़िन्दगी अपने मुताबिक जीना चाहती हैं, घर से बाहर निकलना चाहती हैं. आपसे बर्दाश्त नहीं होता तो हम क्या करें, पर आप क्या गाली देंगे?"
इसके उलट राय साहब कहते हैं की " महिला विमर्श में बृहत्तर संदर्भ जुड़े हुए हैं तो सिर्फ शरीर की बात करना उन्हें सही नहीं लगता...........बल्कि और भी मुद्दों पर बात होनी चाहिए ....
इस पर आपकी क्या राय है? क्या स्त्रीमुक्ति मात्र देह मुक्ति है? 
जहाँ तक महिलाओं की बात है तो चोखेरबाली ब्लॉग पर सुजाता जी का लिखा पोस्ट "धर्म से टकराए बिना स्त्री मुक्ति सम्भव नही" आज की विचारधारा " स्त्रीमुक्ति" को देखा जा सकता है.....वास्तव में 'महिला मुक्ति " शब्द है क्या ? आधुनिक नारीवादी " फेमेनिस्ट " महिलाएं आखिर कैसी मुक्ति का राग अलाप्ती हैं ? कोई तो धर्म , कोई तो देह और कोई कर्म की बात करता है........आखिर आधुनिक जीवन शैली में किसे मुक्ति माना जाना चाहिए ? ये तो आधिनुकतावादी   महिलाएं ही दे सकती हैं ..........पर इस सब पर विचारों की मुक्ति ज्यादा महत्व रखती है.......देह दिखाना न दिखाना ये महिलायों पर है( उनकी मर्जी ) लेकिन कम कपडे या पार्टी और मस्ती( खुलेपन )  को कभी भी महिला मुक्ति नहीं माना जा सकता .......
आपकी राय क्या है???????? 

6 comments:

Girish Kumar Billore said...

इस मामले में अभी कुछ कहना ज़ल्द बाजी है
देख के लिखता हूं

Arvind Mishra said...

नीशू अच्छी बात यह है कि इस बार आपने कुछ प्रश्न उठाये हैं -जवाब मिलना चाहिए -वैसे मुझे भी लगता है नारीवाद के नाम पर देह महिला लेखिकाओं में ज्यादा फोकस पाती है मगर क्या मन को देह से अलग किया जा सकता है ? क्या नारी की देह ही उसकी सबसे बड़ी पूजी नहीं है ? अगर वह लुटी पिटी तो मन भी तो उसका क्षत विक्षत हुआ न ?

Asha Joglekar said...

आज नारी मुक्ती की व्याख्या केवल देहके खुलेपन तक सीमित नही रह सकती ये एक मुद्दा हो सकता है पर इसमें भी हमे देखना होगा कि कुत्ते को रोटी दिखाओगे तो वह तो लपकेगा ही न । हमे होनी चाहिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अपना करीयर चुनने की स्वतंत्रता , मन माफिक शिक्षा पाने की स्वतंत्रता, आर्थिक स्वतंत्रता । बराबरी का हक । चाहे वह भाई बहन का हो या पती पत्नी का ।

अनुनाद सिंह said...

विभूति नारायण जी ने साहस करके सही बात कह दी है तो बहुतों को मिर्ची लग रही है। नारीस्वातंत्र्य और 'मस्तरामाख्यान' एक-दूसरे के पर्याय नहीं हैं।

Mithilesh dubey said...

पर इस सब पर विचारों की मुक्ति ज्यादा महत्व रखती है.......देह दिखाना न दिखाना ये महिलायों पर है( उनकी मर्जी ) लेकिन कम कपडे या पार्टी और मस्ती( खुलेपन ) को कभी भी महिला मुक्ति नहीं माना जा सकता ....

सहमत हूं आपसे

Girish Kumar Billore said...

http://sanskaardhani.blogspot.com/2010/08/blog-post.html