बंद पन्नों को बिखेरा है ,
आज फिर से ,
जिसमें तुम्हारी चंद यादें फिसल गयी,
फर्श पर
आंखों के मोती बनकर ।
मैंने रोकना चाहा
खुद को
पर
नाकाम ही रहा ,
तुम्हारी तस्वीर पर पड़े
आंसू ने
महसूस करना चाहा था
तुम्हारे स्पर्श को ,
तुम्हारी खुश्बू को ,
जो तुम ही दिये हैं मुझे
उम्र भर के के लिए ,
सर्द हवा ने याद दिलाया है ,
तुम्हारी गर्म सासों को,
तुम्हारे नर्म एहसासों को ,
मैं भूलकर भी
तुमको याद करता हूँ
ऐसे ही कभी -कभी
सुबहों में , शामों में ।
6 comments:
bhwana ko khoob hi rachnaatmak dhang se piroya hai
क्या बात है नीशू भाई । अतिसुन्दर भाव लगे इस कविता में ।
क्या भाई
लज्जतदार !!
sunder rachna nishu, achchi abhivyakti.
aap kai toooooooooooooooooo
wah wah kya baat hai neeshoo ji.neha
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