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Thursday, November 26, 2009

" महिलाएं ही महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन हैं "..........मीडिया चर्चा


भारतीय समाज की परिकल्पना स्त्री के बिना संभव ही नहीं लगती परन्तु ऐसे में हमारा समाज पितृसत्तामक ही रहा है या कह लीजिये कि स्त्री को जो अधिकार , स्थान और सम्मान मिलना चाहिए था वह आज भी उससे वंचित रही है तो गलत न होगा । समाजिक ढ़ाचे को संतुलित करने के लिए महिलाएं अहम भागीदारी निभाती है । यह हम विभिन्न रूपों में देखते हैं । समाज के वर्तमान परिदृश्य में महिलाओं की दशा में कुछ सुधार हुआ है जिसे हम कुछ हद तक प्रगतिवादी कदम कह सकते हैं । लेकिन अभी भी शहरों से हम गांवों का रूख करें तो स्थिति अधिक दयनीय ही नजर आती है । समाज में महिलाओं को प्रताड़ित करना , दहेज के लिए जला देना , बलात्कार , हिंसा , मानसिक उत्पीड़न आदि का शिकार होना पड़ता है । ऐसे में प्रगतिशील महिलाओं की मानें तो इन सब घटनाओं के लिए पुरूष को ही दोषी करार दिया जाता है । हमारा परिवार तभी पूर्ण होता है जब तक कि उसमें एक स्त्री का वास हो । तो ऐसे में कई सवाल का उठना स्वाभाविक है ।


ज्यादातर घरों की बात की जाय तो सास बहू के झगड़े आम बात है । क्या महिला दूसरी महिला को समझने में कहीं गलती करती है या फिर वह वही कुछ करना चाहती है जो उसके ऊपर बीता है ? दूसरा सवाल कि दहेज जैसी कुप्रथा समाज में बुरी तरह से व्याप्त है और बहुओं को जलाने की घटनाएं आये दिन हम सभी मीडिया के माध्यम से सुनते और पढ़ते हैं तो क्या दहेज और बहुओं को जलाये जाने के पीछे महिलाओं के हाथ होने से इन्कार किया जा सकता है ? तीसरी सबसे दुखद बात कि जब मां खुद ही अपनी नाबालिंग बच्ची को जल्द ही ब्याह देती है अर्थात मौत के मुंह में ढ़केल देती है ( जब स्त्री को पता होता कि किस उम्र में लड़कियों शादी करनी चाहिए ) । कई खबरें ऐसी भी आती हैं जब सास अपनी बहुओं की पिटाई पर खुश होती हैं पर वह यह भूल जाती हैं कि अगर ऐसी बात उनकी लड़की के साथ हो तो उनका रवैया कैसा रहेगा ? हमारा समाज आज भी लड़की को किसी भी रूप से लड़के के बराबरी का दर्जा नहीं दे पाया है यहां भी महिलाएं अहम निभाती है । कहीं न कहीं पुत्र प्राप्ति को अहम मानती है जिसके लिए दो तीन ब्याह भी करना पड़े तो भी फर्क नहीं पड़ता ।


कहीं न कहीं आज भी महिलाएं अपनी संकुचित विचार धारा से नहीं निकल पायी हैं अगर यह कहा जाय तो गलत न होगा कि " महिलाएं ही महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन हैं " । हां यह बात कुछ प्रगतिवादी महिलाएं शायद मानने तो कतई न तैयार हों पर मुझे यह कहने में जरा भी गुरेज कि सच यही है । संकुचित विचार धारा आज भी हावी नजर आती है स्त्रीओं पर । अतएव पुरूष तो दोषी अवश्य है ऐसी बुराईओं के प्रति परन्तु स्त्री भी कहीं कम नहीं । इसलिए किसी एक पर उगली उठाना कितना जायज होगा । जैसा कि प्रगतिशील महिलाएं पुरूषों को ही पूर्णतः आरोपित करती है । जो खुद को प्रगतिशील मानती है उनसे मेरा सवाल है कि उपर्युक्त सामाजिक बुराईयों के लिए क्या महिलाएं अपनी भागदारी नहीं देती । अपनी राय बेबाकी से कहिये स्वागत है ।?

5 comments:

संतोष कुमार "प्यासा" said...

BILKUL SAHI KAHA HAI
VASTVIKTA SE PARIPOORN HAI APKA YE LEKH
BAHUT ACHHA

Ashok Kumar pandey said...

yah purushon dvara gadha sabse bada jhooth hai neeshu ji.

kya bhai-bhai me vivad nahi hota, kyaa sabse zyada sanghrsh purushon ke biich nahii? to fir koi yah kyon nahi kahta ki mard-mard ka dushman hai?

aur iske doosre aayaam bhi hain jo striyon ke doyam darze ke naagarik hone se jude hain.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

विचारणीय मुददा है।


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क्या धरती की सारी कन्याएँ शुक्र की एजेंट हैं?
आप नहीं बता सकते कि पानी ठंडा है अथवा गरम?

निर्मला कपिला said...

शिक कुमार पाण्डेय जी से पूरी तरह सहमत हूँ। ये जरूर कहना चाहूँगी कि अगर नारी प्रगति की बात करनी है तो नारियों को भी खुद मे कुछ बदलाव लाने होंगे और नारी के खिलाफ प्रताडना मे एक जुट होना होगा। शुभकामनायें

वाणी गीत said...

नारी ही नारी की दुश्मन है ...मेरी असहमति दर्ज करें ....
विचारों में असमानता होती है ...क्या सभी पुरुष सभी मुद्दों पर एक मत होते हैं ...क्या पिता पुत्र , भाई भाई , भाई बहन, मित्रों आदि में झगडे नहीं होते ...या इन रिश्तो में कोई प्रताड़ित या प्रताड़क नहीं होता ...
ये सिर्फ आपकी एकतरफा सोच है ...यूँ तो इंसान ही इंसान का दुश्मन है ...फिर इसे क्यों नहीं ब्रह्म वाक्य मान लिया जाए ...!!