किसे कहें अपना घर
वो जहाँ बचपन बीता
या वो जहाँ पिता ने भेजा
बाबा बोले जा बेटी आज अपने घर जा
मन ने सोचा तो जहाँ बचपन गुज़रा वो क्या था?
ज़िन्दगी का एक नया पड़ाव आया
जहाँ सब लगते थे बेगाने केवल अपना लगता था साया
दिन बीते साल बीते...एक लंबा पड़ाव गया बीत
कुछ अनबन हुई...मेरी दुनिया हिल गई
पति ने आँख दिखा कर कहा
जा अपने घर चली जा
मेरे दिल में हर वक्त ये सवाल पनपा
जिसे सोच कर बार-बार मन ठनका
सिसकियाँ रुक गईं और मन से निकली चीख
न बाबा ने बताया न पति ने
क्या आप जानते हैं?????
मेरा घर कौन सा है????
2 comments:
नारी ह्रदय की वेदना को बखूबी उठाया है।बहुत बढिया!
अच्छी सोचने को विवश करती कविता।
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