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Saturday, February 23, 2008

किसे कहें अपना घर

किसे कहें अपना घर
वो जहाँ बचपन बीता
या वो जहाँ पिता ने भेजा
बाबा बोले जा बेटी आज अपने घर जा
मन ने सोचा तो जहाँ बचपन गुज़रा वो क्या था?
ज़िन्दगी का एक नया पड़ाव आया
जहाँ सब लगते थे बेगाने केवल अपना लगता था साया
दिन बीते साल बीते...एक लंबा पड़ाव गया बीत
कुछ अनबन हुई...मेरी दुनिया हिल गई
पति ने आँख दिखा कर कहा
जा अपने घर चली जा
मेरे दिल में हर वक्त ये सवाल पनपा
जिसे सोच कर बार-बार मन ठनका
सिसकियाँ रुक गईं और मन से निकली चीख
न बाबा ने बताया न पति ने
क्या आप जानते हैं?????
मेरा घर कौन सा है????

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

नारी ह्रदय की वेदना को बखूबी उठाया है।बहुत बढिया!

mamta said...

अच्छी सोचने को विवश करती कविता।