जन संदेश
Saturday, January 16, 2010
अतुल्य भारत से सेक्स टूरिजम तक
देश से गायब होने वाले नाबालिक बच्चों के खरीदफरोख्त की समस्या बहुत ही विकराल है । इन बच्चों को राज्य से दूसरे राज्य अथवा पड़ोसी देशों में बेच दिया जाता है । इन बच्चों को सेक्स वर्कर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है । आकड़ों की माने तो ७० फीसदी से अधिक सेक्स वर्कर बच्चे ही है । बच्चों को अगवा होने की घटनाएं तेजी से अपना पैर पसार रही हैं। जिससे वेश्यावृत्ति और सेक्स टूरिजम का व्यापार व्यापक हुआ है ।
कानूनी दांव पेच की बात की जाय तो आईपीसी की धारा ३७६ ( ब्लात्कार ) के तहत इनके आरोपियों को सबक मिल सकता है जबकि ऐसा होता बहुत ही कम है । किसी भी बच्चे से सेक्स करने वाले तथा वेश्यावृत्ति की तरफ ढ़केलने वालों को ऊपर धारा ३७६ के अन्तर्गत मामला दर्ज होना चाहिए ।
सामाजिक रूप से इस विषय को देखा जाय तो सभ्य समाज में अवैध व्यापार और वेश्यावृत्ति किसी प्रकार से स्वीकार्य नहीं है । पर फिर भी देश में सेक्स वर्कर और वेश्यावृत्ति का बाजार बढ़ा है । इस समस्या का कोई हल हो सकता है क्या ? वेश्यावृत्ति के मामले का जब कभी खुलासा होता है तो सामाजिक दबाव के चलते पारिवारिक लोग अपने बच्चे को स्वीकार नहीं करते हैं । ऐसी समस्या को मात्र कानून से नहीं बल्कि सामाजिक ढ़ाचे के अनुसार स्वीकार करना होगा ।
" अतुल्य भारत " से भारतीय टूरिजम को बहुत फायदा हुआ है । साथ ही साथ सेक्स टूरिजम के माध्यम से ऐसे नाबालिक बच्चों का शोषण भी हुआ है जिसका वर्तमान में हल नहीं नजर आता है । इस बुराई के पीछे क्या समाज को दोषी करना गलत है ? जिसमें परिजनों को अपने बच्चे को स्वीकार करना भी एक गुनाह है । आखिर इन बुराईयों से कैसे निपटा जाय जब अपने ही हाथ पीछे खींच लेते हैं ।।
चित्रः गूगल से आभार
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2 comments:
sthiti bahut hi chintajanak hai.....aap ne bahut hi gambhir aur zaroori mudda uthaya hai
dhnyavad !
"इन बुराइयों से कैसे निपटा जाए?"
सचमुच बहुत कठिन है - इस प्रश्न का उत्तर दे पाना!
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ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, कोहरे में भोर हुई!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", मिलत, खिलत, लजियात ... ... .
संपादक : सरस पायस
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