सरकार को जनता चुनती है अपना प्रतिनिधत्व करने के लिए परन्तु दुख इस बात का होता है कि जन प्रतिनिधि सत्ता को अपने बाप की बपौती समझते हैं । संस्कृति को बचाना और बढ़ाना हम सभी का दायित्व है लेकिन किसी की जान लेकर नहीं और बिना कुछ तहस-नहस किये हुए । कुछ संगठन संस्कृति के बचाव हेतु किये लगे ऐसे कार्य को सही मान सकते है मगर यह पूर्णतः गलत है । भारतीय संस्कृति में पहनावे और दिनचर्या को लेकर सदैव लड़कियों और महिलाओं को दोषी करार दिया जाता है । सभी अपने अपने तर्क देते हैं लेकिन इनको ही दोष देकर हम संस्कृति को बचा लेगें क्या? बदलाव को स्वीकार करना होगा और समय की गतिशीलता के अनुसार कार्य करना ही हमारा सर्वोच्च प्रयास हो सकता है । किसी को प्रताड़ित और डरा धमका कर बदलाव नहीं किया जा सकता है । सरकार अपनी जिम्मेदारियों से किसी प्रकार अपना मुंह नहीं मोड़ सकती है । जनता की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी । समाज में किसी तरह के उपद्रवियों बक्शा नहीं जाना चाहिए ।
जन संदेश
Friday, January 15, 2010
संस्कृति के बहाने राजनीति में तानाशाही कितनी जायज ?
राजनीति के बल पर कुछ भी किया जा सकता है क्या ? और वह भी तब जब सत्ता आपके हाथ में हो । भारतीय परिपेक्ष में यह बात तो हम सभी को आये दिन देखने , सुनने और पढ़ने को मिल ही जाती है । लोकतंत्र में तानाशाही का समावेश देखना हो तो हमें भारत से कहीं बाहर जाने की जरूरत ही क्या है ? अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर ......भारतीय संस्कृति विश्व भर में अपनी विविधता के लिए जानी जाती है । और इसी संस्कृति पर हमें गर्व भी होता है जो हमें दुनिया के सभी देशों से भिन्न बनाती है । संस्कृति और धर्म को परस्पर एक दूसरे से जोड़कर देखा जाता है । भारतीय संस्कृति को बचाये रखने के लिए देश में कई नामी-गिरामी संगठन भी काम कर रहे हैं । ये संगठन संस्कृति को बचाने को लेकर कुछ भी नष्ट करने पर भी उतारू हो जाते हैं । जैसा कि अभी मध्य प्रदेश में हुआ है । संस्कृति बचाओ संगठन ने खूब जी भरकर तोड़ फोड़ की और सरकार हाथ पर हाथ धरे हुए मूक बनी रही । कई बार आम जनता को अपनी जान भी गंवानी पड़ती इन संस्कृति के चक्कर में । कोई भी हादसा होने बाद कितना भी पश्चाताप क्यों न कर लिया पर जो घटित हो चुका होता है उसे वापस नहीं लाया जा सकता । अगर पहले ही पहल की जाय तो ऐसे किसी भी संभावित घटना को रोका जा सकता है ।
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1 comment:
नीशू को नहीं
नीशू के लेखन को
बधाई
आज 12 फरवरी 2010 को
यह पोस्ट
दैनिक जनसत्ता के
समांतर स्तंभ में
प्रकाशित
पाई।
बेटिप्पणी पोस्ट
को मिलता है
मौका
टिप्पणी न मिले
तो समझ लें
प्रिंट मीडिया उसे
उठा ही लेगा।
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