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Monday, November 23, 2009

रिश्ते बंद है आज चंद कागज के टुकड़ो में

रिश्ते बंद है आज

चंद कागज के टुकड़ो में,

जिसको सहेज रखा है मैंने

अपनी डायरी में,

कभी-कभी खोलकर

देखता हूँ उनपर लिखे हर्फों को

जिस पर बिखरा है

प्यार का रंग,

वे आज भी उतने ही ताजे है

जितना तुमसे बिछड़ने से पहले,

लोग कहते हैं कि बदलता है सबकुछ

समय के साथ,

पर

ये मेरे दोस्त

जब भी देखता हूँ

गुजरे वक्त को,

पढ़ता हूँ उन शब्दो को

जो लिखे थे तुमने,

गूजंती है तुम्हारी

आवाज कानो में वैसे ही,

सुनता हूँ तुम्हारी हंसी को

ऐसे मे दूर होती है कमी तुम्हारी,

मजबूत होती है

रिश्तो की डोर

इन्ही चंद पन्नो से,

जो सहेजे है मैंने

न जाने कब से।।

6 comments:

दिवाकर मणि said...

बहुत सही कहा जी...

"मजबूत होती है
रिश्तो की डोर
इन्ही चंद पन्नो से,
जो सहेजे है मैंने
न जाने कब से।।"

निर्मला कपिला said...

लोग कहते हैं कि बदलता है सबकुछ

समय के साथ,

पर

ये मेरे दोस्त

जब भी देखता हूँ

गुजरे वक्त को,

पढ़ता हूँ उन शब्दो को

जो लिखे थे तुमने,

गूजंती है तुम्हारी

आवाज कानो में वैसे ही,
प्यार की सुन्दर अनुभूति के साथ सुन्दर रचना है बधाई

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

जीवन के चंद पन्ने ही हमेशा यादगार और हसीं रहते हैं.....
उसी चंद पन्नो की बेहतरीन कहानी आपकी रचना की जुबानी..

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया रचना नीशू जी बधाई ....

Udan Tashtari said...

जबरदस्त, नीशू!!

Yogesh Verma Swapn said...

bahut achchi hai neeshu.