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Wednesday, November 18, 2009

गजल ( क्या भूला क्या याद रहा )

इस मंजिल के रस्ते में, क्या-क्या छूटा कुछ याद नहीं।
ये भी नहीं लगता कि कोई मंजिल इसके बाद नहीं।।

रूह थकी सी लगती है, ऐ यारो अब तो जिस्म के साथ,
दो पल चैन से कब सोया था यह भी ठीक से याद नहीं।।

माँ ने प्यार से समझाया था, क्या करना, क्या न करना,
क्या भूला क्या याद रखा, कुछ याद नहीं अब याद नहीं।।

मैंने कितनी मंजिलें बदली, रस्ते बदले, साथी भी,
क्या जो बना हूँ, वही बनना था कन्फ्यूजन है, याद नहीं।

2 comments:

श्यामल सुमन said...

माँ ने प्यार से समझाया था, क्या करना, क्या न करना,
क्या भूला क्या याद रखा, कुछ याद नहीं अब याद नहीं।।

सुन्दर भाव नीशू जी। अच्छी कोशिश। लेकिन इसे गजल कहना क्या उचित होगा? हो सके तो जरा विचार कर लें।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Yogesh Verma Swapn said...

neeshu , sunder bhav liye achchi rachna. likhte raho.