जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Sunday, August 31, 2008

खामोश हूँ मैं


खामोश रात में तुम्हारी यादें,
हल्की सी आहट के साथ
दस्तक देती हैं,
बंद आखों से देखता हूँ
तुमको,
इंतजार करते-करते परेशान नहीं होता अब,
आदत हो गई है तुमको
देर से आने की।
कितनी बार तो शिकायत की ती तुमसे ही
पर
क्या तुमने किसी बात पर
गौर किया ? नहीं न,
आखि़र मैं क्यों तुमसे इतनी
उम्मीद करता हूँ,
क्यों मैं विश्वास करता हूँ तुम पर
जान पाता कुछ भी नहीं,
पर
तुमसे ही सारी उम्मीदें जुडी है।
तन्हाई में,
उदासी में,
जीवन के हर पल में ,
खामोश दस्तक के साथ
आती हैं तुम्हारी यादें।
महसूस करता हूँ -
तुम्हारी खुशबू को,
तुम्हारे एहसास को,
तुम्हारे दिल की धडकन का बढ़ना
और
तुम्हारे चेहरे की शर्मीली लालिमा को,
महसूस करता हूँ-
तुम्हारा स्पर्श,
तुम्हारी गर्म सांसे ,
उस पर तुम्हारी खामोशी,
और
आगोश में करने वाली मध्धम-मध्धम बयार को।
खामोश रात में बंद पलकों से इंतजार करता हूँ
तुम्हारी इन यादों का.............

1 comment:

Unknown said...

hiiii nishant.......apki kavita padhi seriousaly bahut achi n meaningful hai.........gr8 goin n keep it up........all d best.....