जन संदेश

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Friday, May 9, 2008

छणिकाएं

१-
दिल के तूफान को किसने देखा,
ये तो सिर्फ आखों का धोखा।
छूना चाहता है समुन्दर चांद
कोउठती हुयी लहरों को किसने देखा है।।
२-
जीवन के होते हैं कई रंग,
बचपन ,जवानी बुढ़ापे में भी जंग।
ये जंग तो पुरानी है,
जीवन एक अधूरी सी कहानी है,
कहानी को पूरा करने में लगा है इंसान ,
ढ़ूढ रहा है अपने ही पैरों के निशान।।
३-
पाने की चाहत , खोने का गम।
दुनिया में होते है इतने ही गम।
किसी से नफरत किसी से चाहत,
तनहाई का आलम बड़ा बेरहम।।


प्रियंका दीक्षित की धारदार कलम से

3 comments:

rakhshanda said...

पाने की चाहत , खोने का गम।
दुनिया में होते है इतने ही गम।
किसी से नफरत किसी से चाहत,
तनहाई का आलम बड़ा बेरहम।।

दिल को छू गई ये लाईनें

राजीव रंजन प्रसाद said...

तीनों ही अच्छी क्षणिकायें हैं..

***राजीव रंजन प्रसाद

Udan Tashtari said...

वाह नीशू...बहुत सही.


गजब हैं सारे गीत,,,, आनन्द आ गया हमेशा की तरह..बल्कि ज्यादा. आभार..


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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.

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शुभकामनाऐं.

समीर लाल
(उड़न तश्तरी)